स्वतंत्रता सेनानी महेश साह की जीवनी पर आधारित पुस्तक का विमोचन
1 min readस्वतंत्रता सेनानी महेश साह की जीवनी पर आधारित पुस्तक का विमोचन
महुआ में विशेष कार्यक्रम का आयोजन कर पुस्तक का किया गया विमोचन, स्व महेश साह के नाती पत्रकार अजीत कुमार मुन्ना द्वारा लिखित पुस्तक को लोगों ने सराहा
महुआ, नवनीत कुमार
महुआ के जाने-माने स्वतंत्रता सेनानी स्व महेश साह के जीवन पर आधारित पुस्तक का विमोचन रविवार को किया गया। पत्रकार अजीत कुमार मुन्ना द्वारा लिखित महेश साह नामक पुस्तक के लोगों ने सराहना की और कहा कि यह महेश बाबू को अमरता की ओर ले जाएगी।
विमोचन के दौरान लोगों ने पुस्तक में स्वतंत्रता सेनानी महेश बाबू के जीवन पर्यंत बातों को पढ़कर लेखक को धन्यवाद दिया। लोगों ने कहा कि यह कार्य बहुत ही सम्मानजनक की गई है। इस पुस्तक को पढ़कर लोग महेश बाबू के जीवनी को लोग हमेशा याद रखेंगे। महुआ के पातेपुर रोड में आयोजित इस समारोह में मुख्य अतिथि के रुप में स्वतंत्रता सेनानी की पुत्री शकुंतला देवी ने इस पुस्तक का विमोचन किया। पुस्तक विमोचन के समय मुख्य अतिथि ही नहीं बल्कि वहां उपस्थित अन्य लोगों की आंखें नम हो गई। लेखक अजीत कुमार ने इस पुस्तक के माध्यम से महेश साह के जीवनगाथा लोगों के बीच रखने का काम किया है। उन्होंने बताया कि इस पुस्तक में सिर्फ एक व्यक्ति मात्र का जीवन परिचय ही नहीं बल्कि एक काल खंड की तमाम घटनाक्रम है, जो खास कर स्वतंत्रता संग्राम से संबंधित शोध कर रहे छात्रों के लिए उपयोगी होगा। इस पुस्तक के माध्यम से आजादी की लड़ाई में मुजफ्फरपुर, वैशाली तथा आसपास के क्षेत्रों की तमाम गतिविधियों का वर्णन किया गया है। विमोचन समारोह की अध्यक्षता अरुण कुमार राजू ने की। जबकि संचालन सुमित सहगल ने किया। मुख्य अतिथि शकुंतला देवी ने बताया कि पुस्तक लिखने के लिए लेखक के प्रति आभार व्यक्त करते हैं। जिन्होंने महेश बाबू के जीवन चरित्र का वर्णन किया है। इस विमोचन समारोह में व्यापारी संघ के सचिव अमर कुमार गुप्ता, अभय कुमार, अनिल कुमार, अशोक गुप्ता, संजय गुप्ता, राजीव जयसवाल, अभिषेक जयसवाल, रमन कुमार गुप्ता, अरबिंद चौधरी, अमरेंद्र कुमार अरुण, मनोज जयसवाल, प्रो. अरुण कुमार, अजय गुप्ता, रामेश्वर प्रसाद, विजय कुमार, वंदना गुप्ता, रेखा गुप्ता आदि उपस्थित थे। पुस्तक के विमोचन के मौके पर पत्रकारों को सम्मानित भी किया गया। लेखक अजीत कुमार मुन्ना ने बताया कि 113 पृष्ठ के लिखित पुस्तक के लिए उन्हें 2 वर्षों तक कड़ी मशक्कत करनी पड़ी है। अपने नाना जी के जीवन से संबंधित सारे आलेखों को जुटाने में उन्हें काफी परेशानी आई है। हालांकि वह इस पुस्तक को लिखकर अपने को गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं।