ब्रह्माकुमारी कुंदन बहन ने कहा कि कर्म ही आत्मा का दर्शन कराने का दर्पण है।
1 min readब्रह्माकुमारी कुंदन बहन ने कहा कि कर्म ही आत्मा का दर्शन कराने का दर्पण है।
रिपोर्ट :नसीम रब्बानी, बिहार
शिवाजीनगर: प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के द्वारा दुर्गा मंदिर परिसर में आयोजित सात दिवसीय राजयोग मेडिटेशन शिविर के पांचवें दिन कर्मों की गहन गति पर प्रकाश डालते हुए रोसड़ा से आई ब्रह्माकुमारी कुंदन बहन ने कहा कि कर्म ही आत्मा का दर्शन कराने का दर्पण है। हमारा कर्म ही हमारे चरित्र की पहचान कराता है। अपने कर्मों के कारण ही आत्मा सुख या दुःख का अनुभव करती है। कर्म के बिना हम एक पल भी नहीं रहते लेकिन हर पल हमारे द्वारा किया जाने वाला कर्म हमारे भाग्य का निर्माण करता है। हमारे मन में उठने वाला एक विचार भी कर्म का एक सूक्ष्म रूप है। जो कर्म हम आत्मिक स्मृति में स्थित होकर परमात्मा पिता की याद में करते हैं वह कर्म श्रेष्ठ कर्म अथवा सुकर्म कहलाता है। ऐसे कर्म का परिणाम अति सुखकारी, सर्व के लिए कल्याणकारी एवं सफलता प्रदान करने वाला होता है। इसी प्रकार जो कर्म किसी भी विकार के वशीभूत होकर किया जाता है, वह पापकर्म या विकर्म कहलाता है। पिछले 63 जन्मों से पापकर्म करते-करते आत्मा बोझिल हो गई है। फलस्वरुप दुःख-चिंता-निराशा-भय उसके दैनिक जीवन का हिस्सा बन गये हैं। अब परमात्मा स्वयं हमें अपने पाप धोने की विधि सीखा रहे हैं। शिव भगवानुवाच: गंगा स्नान करने से आत्मा के पाप नहीं धुलते। यदि ऐसा होता तो पाप का प्रभाव कम होता जाता। लेकिन पाप तो दिनोंदिन बढ़ते ही जा रहे हैं। गंगाजल से शरीर की अशुद्धियां तो मिट सकती हैं लेकिन आत्मा पर चढ़ा हुआ पाप का मैल परमात्मा शिव की याद से ही उतर सकता है। जैसे स्नान करने से हल्कापन महसूस होता है, वैसे ही परमात्मा की याद का स्नान करने से आत्मा खुशी, हल्केपन, शांति, शक्ति और आनंद का अनुभव करती है।
दुर्गा मंदिर परिसर में सात दिवसीय नि:शुल्क शिविर का बृहस्पतिवार को आखिरी दिन है। सभी प्रखंड वासियों से शिविर के अंतिम दिन भारत के प्राचीन राजयोग के महात्म्य को जानने हेतु अनुरोध किया गया।