तीज और चौथ चंदा एक साथ होने को लेकर नगर गांव हर जगह भक्ति में रहे लोग
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महुआ, नवनीत कुमार
तीज और चौथचंदा मंगलवार को एक साथ होने पर नगर और गांव में भक्ति प्रवाण पर रही। तीज पर सुहागिनों ने दुल्हन की तरह से सज सबरकर पंडितों से भगवान शंकर और माता पार्वती की कथा सुनी। वहीं चौथचंदा पर शाम में चांद निकलने पर उन्हें दही फल आदि प्रसाद से अर्ध देकर पूजन किया गया।
पंडितों ने बताया कि दिन में अपराहन 2:30 बजे तक की तृतीया तिथि होने कारण तीज व्रत का शुभ मुहूर्त रहा। वहीं शाम में चतुर्थी होने के कारण चांद निकलने पर चौथचंदा व्रत किया गया। बताया कि भाद्रपद शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाए जाने वाले हरतालिका तीज का काफी महत्व है। इसे सुहागिनों द्वारा विधि विधान के साथ किए जाने पर मनचाहा फल की प्राप्ति होती है। यह अखंड सौभाग्यवती होने के लिए महिलाएं व्रत करती है। इस पर्व पर सुहागिने दुल्हन की तरह सजती सबरती है और पंडितों से भगवान शंकर व माता पार्वती की कथा सुनतीे हैं। ऐसा माना जाता है कि भगवान शंकर और माता पार्वती का प्रेम अगाध है। सुहागिनी पर्व पर शंकर और पार्वती से उनके अपने जैसे प्रेम की मांग करती हैं ताकि वह जन्म जन्मांतर तक बना रहे। घर में सुख समृद्धि आने साथ सदा सुहागन रहने और घर भरा पूरा रहे इसके लिए यह पर्व किया जाता है।
इसे हरतालिका तीज कहा गया है। भादो में चारों ओर हरियाली रहती है। इसीलिए हरित पर हरियाली कि हम पूजा करते हैं। ग्रामीण क्षेत्र में हरियाली का महत्व खेतों में फसलें भरा पूरा माना जाता है। पर्व पर सारी मौसमी फल, अन्न की बाली चढ़ाए गए। इसे कजरी तीज भी कहा गया है। सावन और भादो ग्रामीण परिवेश के लिए काफी महत्वपूर्ण माना गया है। कजरी कर्म प्रधानता का रूप माना गया है। इस समय ग्रामीण लोग खेती में बढ़-चढ़कर लग जाते हैं।
क्यों सुहाग ने करती हैं तीज:
पौराणिक ग्रंथों में बताया गया है कि दक्ष प्रजापति की पुत्री सती भगवान शंकर की अर्धांगिनी थी। सती ने पिता दक्ष के द्वारा भगवान शंकर की उपेक्षा किए जाने कारण अपने प्राणों की आहुति दी थी और पुनः पर्वतराज हिमालय के घर जन्म लेकर पार्वती बनी। यह पर्व पति पत्नी को जन्म जन्मांतर तक एक बने रहने को बताया गया है। ग्रंथ में बताया गया है कि नारद के कहने पर हिमालय पुत्री पार्वती का विवाह भगवान विष्णु से करना चाह रहे थे। पार्वती की इच्छा को देखते हुए उनकी सखियां उनका हरण कर जंगल के गुफा में ले गई। जहां पर पार्वती ने शिवलिंग की स्थापना आज ही के दिन की और कठोर तपस्या से भगवान शंकर विचलित होकर उन्हें अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार किया। भगवान शंकर पत्नी को पुरुष के समानांतर माना है। इसलिए कई जगह पर आधी शंकर और आधा पर्वती को भी दिखाया जाता है। महिलाएं अपने जीवन साथी के साथ सुखी जीवन बिताने और उन्हें दीर्घायु होने की मनोवांछित फल प्राप्त करने के लिए यह पर्व करती हैं। इधर पर्व पर शिव पार्वती की अमर प्रेम की कथा सुनने के लिए पंडितों की कमी देखी गई। मिर्जानगर, सिंघाड़ा, बरियारपुर बुजुर्ग, रसूलपुर आदि स्थानों पर सामूहिक तीज व्रत का अनुष्ठान सुहागिनों ने रखा।