November 14, 2021

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देवउठनी एकादशी पर समाजसेवी और ज्योतिषी का विचार* *रिपोर्ट:-आदित्य कुमार सिंह*

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*देवउठनी एकादशी पर समाजसेवी और ज्योतिषी का विचार*

 

 

*रिपोर्ट:-आदित्य कुमार सिंह*

जीरादेई:-प्रखंड के जामापुर निवासी समाजसेवी चन्द्रमा सिंह ने देवउठनी एकादशी पर चर्चा करते हुए बताया की जब शुभ दिन आता है तब अपने आप शगुन दिखने लग जाते हैं, पंछियों की चहक सुनाई देने लगती है और दिशाएं स्वयं खिल उठती हैं। ऐसे ही शुभ दिनों में एक दिन है देवउठनी एकादशी। कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को लोग देवउठनी एकादशी के नाम से जानते हैं। क्षीर सागर में चार महीने की योगनिद्रा के बाद भगवान विष्णु इस दिन उठते हैं।
इससे पहले भगवान विष्णु आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष में विश्राम करने के लिए चले जाते हैं। भगवान विष्णु के शयन को देवशयनी एकादशी कहा जाता है। प्रभु इन चार महीनों में निद्रा करते हैं इसलिए इन चार मासों को चातुर्मास भी कहा जाता है।
वही दूसरी तरफ आचार्य पंडित अरविन्द मिश्रा ने इस विषय पर चर्चा करते हुए बताया की इस व्रत को किस मुहूर्त मे और कब किया जाता हैं.
*देवउठनी एकादशी शुभ मुहूर्त*
*इस वर्ष यानी 2021 में देव उठनी एकादशी 14 नवंबर को मनाया जाएगा और इसके बाद से मांगलिक कार्यों का भी आरंभ हो जाएगा।*
देवउठनी एकादशी व्रत 14 नवंबर को रहेगा और इसको 15 नवंबर को सुबह श्री हरि का पूजन करके समाप्त करना चाहिए।

*दशमी तिथि आरंभ समय:–* 14 नवंबर सुबह 09:00 बजे
*एकादशी तिथि आरंभ समय:-* 15 नवंबर सुबह 08:51 बजे
*एकादशी तिथि समापन समय:-* 16
नवंबर सुबह09:16पर इसलिए एकादशी है होगी
एकादशी व्रत में पारण का अपना अलग ही महत्व होता है और इसलिए यदि सही मुहूर्त में पारण किया जाए तो उसका फल कई गुना मिलता है।
*पारण मुहूर्त:-* 15, नवंबर को है
*चातुर्मास में वर्जित होते हैं शुभ कार्य*
भगवान विष्णु जब निद्रा ले रहे होते हैं तब उस समय कोई भी मांगलिक कार्य जैसे विवाह, मुंडन संस्कार, जनेऊ, गृह परवेश इत्यादि कार्य रोक दिए जाते हैं इसलिए शुभ और मांगलिक कार्यों के लिए भगवान विष्णु के उठने का इंतजार किया जाता है और तत्पश्चात भगवान के आशीर्वाद से शुभ कार्यों की शुरुवात की जाती है।
वैसे तो चार महीने का समय लंबा होता है और आज वर्तमान में लोग कह भी सकते हैं चार महीने जैसी लंबी अवधि क्यों? तो इसको इस लॉजिक से समझा जा सकता है कि, जैसे हमारे लिए एक दिन का समय बहुत छोटा माना जा सकता है तो वहीं कुछ जीव ऐसे भी हैं जो पूरे एक दिन में अपना पूरा जीवन जी लेते हैं। तो वहीं कोई जीव ऐसा भी हो सकते हैं जो दस वर्षों में आयु सीमा पूर्ण करते हैं। इस तरह से एक ही चीज के लिए सबके पास अलग अलग समय रहता है।
ईश्वर तो अविनाशी हैं, अनंत हैं, ऐसे में यदि प्राचीन काल से भगवान विष्णु के सोने की प्रथा है तो उनकी एक नींद यानी उनके लिए हो सकता है पलक झपकते ही चार महीने निकल जाते हों लेकिन हमारे लिए हमारे जीवन के हिसाब से यह एक बड़ा समय होता है।
*तुलसी विवाह से जुड़े अहम नियम*
देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह का विशेष महत्व बताया गया है। तुलसी विवाह कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष में एकादशी के दिन किया जाता है। तुलसी विवाह के माध्यम से इस दिन का संपूर्ण लाभ उठाने के लिए आइये जान लेते हैं तुलसी विवाह से जुड़े महत्वपूर्ण नियम, शुभ मुहूर्त और सावधानियां।
*तुलसी विवाह 2021: शुभ मुहूर्त*
तुलसी विवाह तिथि – सोमवार, 15 नवंबर 2021
*द्वादशी तिथि प्रारंभ:-* 09:16 बजे (16 नवंबर 2021) से
द्वादशी तिथि समाप्त – 08:10 बजे (17 नवंबर 2021) तक

*तुलसी विवाह मुहूर्त*
15 नवंबर 2021: दोपहर 1:02 बजे से दोपहर 2:44 बजे तक
15 नवंबर 2021: शाम 5:17 बजे से – 5:41 बजे तक
जिस भी स्थान पर आप तुलसी विवाह करने जा रहे हैं वहां तुलसी का पौधा रखने से पहले उस जगह की अच्छे से साफ सफाई अवश्य करें।
पूजा वाली स्थान पर और तुलसी के गमले पर गेरू लगाएं।
तुलसी विवाह के लिए मंडप तैयार करने के लिए गन्ने का इस्तेमाल करें।
पूजा प्रारंभ करने से पहले स्नान अवश्य करें, साफ कपड़े पहनें, और तुलसी विवाह के लिए आसन बिछाएं।
इसके बाद तुलसी के पौधे पर चुनरी और श्रृंगार का सामान जैसे, चूड़ी, बिंदी, आलता आदि मां तुलसी को अर्पित करें।
मंडप में तुलसी के पौधे को रखने के बाद दाई तरफ एक साफ़ चौकी पर शालिग्राम रखें।
इसके बाद भगवान शालिग्राम के ऊपर हल्दी दूध मिलाकर चढ़ाएं।
शालिग्राम का तिलक करते समय तिल का इस्तेमाल करें।
इसके अलावा इस पूजा में गन्ने, बेर, आंवला, सिंघाड़ा, सेब इत्यादि फल चढ़ाएं।
तुलसी विवाह के दौरान मंगलाष्टक ज़रूर पढ़ें।
इसके बाद घर का कोई पुरुष भगवान शालिग्राम को चौकी सहित बाएं हाथ से उठाकर तुलसी माता की सात बार परिक्रमा करें।
इसके बाद तुलसी विवाह संपन्न हो जाता है और विवाह संपन्न होने के बाद सभी को प्रसाद वितरित करें।

 

*प्रबोधनी एकादशी व्रत कथा*
श्री कृष्ण जी बोले-हे युधिष्ठिर!कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम प्रबोधनी है।इसमें भगवान विष्णु जागते हैं इस कारण इसका नाम देवोत्थान भी कहा गया है।इसके महात्म्य की कथा ब्रह्मा जी ने नारद ऋषि से कही थी जिसके हृदय में प्रबोधनी एकादशी का व्रत करने की इच्छा उत्पन्न होती है उसके सौ जन्म के पाप भस्म हो जाते हैं और जो व्रत को विधि पूर्वक करता है उसके अन्नत जन्म के पाप नष्ट हो जाते हैं।भगवान की प्रसन्नता का मुख्य साधन है।प्रबोधनी एकादशी के व्रत से मनुष्य को आत्मा का बोध होता है।जो इस व्रत से विष्णु की कथा सुनते हैं उन्हें सातों द्वीपों के दान करने का फल प्राप्त होता है।जो कथावचक की पूजा करता है वह उत्तम लोगों को प्राप्त करते हैं।कार्तिक मास में जो तुलसी द्वारा भगवान की पूजा करता है, उसके दस हजार जन्म के पाप नष्ट हो जाते हैं।जो पुरुष कार्तिक में वृन्दा का दर्शन करते हैं, वह हजार युग तक एक ही बैकुण्ठ में निवास करते हैं।जो तुलसी का वृक्ष लगाते हैं, उनके वंश में नि:सन्तान नहीं होता जो तुलसी की जड़ में जल चढा़ते है उनकी वंश सदैव फूली फली रहती है।जिस घर में तुलसी का वृक्ष हो उसमे सर्प देवता निवास करते हैं, यमराज के दूत वहां स्वप्न में भी नहीं विचरते।जो पुरुष तुलसी वृक्ष के पास श्रद्धा से दीप जलाते हैं।उनके हृदय में दिव्य चक्षु का प्रकाश होता है।जो शालिग्राम की चरणोदिक में तुलसी मिलाकर पीते हैं, उनके निकट अकाल मृत्यु नहीं आती, सर्व व्याधियाँ नष्ट हो जाती है, पुनर्जन्म को वह नहीं प्राप्त होता।ऐसी पतित पावनी तुलसी का पूजन इस मंत्र से करना चाहिए *ऊँ श्री वृन्दाय नमः* जो चतुर्मास या एकादशी में मौन धारण करे उसे स्वर्ण सहित तिल का दान करना चाहिए कार्तिक मास या चतुर्मास में नमक का त्याग करते हैं।उन्हें शक्कर दान करना चाहिए।कार्तिक शुक्ल एकादशी से पुण्या तक देव स्थानों में दीपक जलाने से महा पुण्य है।बुद्धिमान पुरुष सारा कार्तिक को यहीं नदी तट इत्यादि पूज्य स्थानों में दीपक जलाते हैं।प्रबोधनी एकादशी महात्म्य सुनने से अनेक गौ दान का फल मिलता है।

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