November 17, 2025

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17 नवंबर विश्व प्री-मैच्योरिटी दिवस: नियमित प्रसव पूर्व जांच से प्री टर्म बच्चों की बचायी जा सकती है जान

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17 नवंबर विश्व प्री-मैच्योरिटी दिवस: नियमित प्रसव पूर्व जांच से प्री टर्म बच्चों की बचायी जा सकती है जान

— राज्य में 115 एफआयू में Software को किया जा रहा समृद्ध

— प्री टर्म बच्चों के जन्म से बचने के लिए गर्भावस्था की तीसरी तिमाही में अल्ट्रासोनोग्राफी के महत्व पर ज़ोर

पटना। हर साल दुनिया भर में लगभग हर 10 में से 1 बच्चा समय से पहले यानी 37 सप्ताह से पहले जन्म लेता है। ऐसे शिशुओं को अक्सर सांस लेने में कठिनाई, संक्रमण, और शरीर का तापमान बनाए रखने में परेशानी जैसी गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। डब्ल्यूएचओ और यूनिसेफ की यह रिपोर्ट दर्शाती है कि हर साल लाखों छोटे जीवन समय से पहले ही खत्म हो जाते हैं। राज्य इन मौतों में से अधिकतर को बेहतर देखभाल और सशक्त स्वास्थ्य प्रणालियों के ज़रिए रोकने की कोशिश जारी रखे है। एसआरएस 2021—23 के मुताबिक चाइल्ड बर्थ रेट 25.5 है जो एचएमआईएस और पीएमएसएमए के आंकड़ों के मुताबिक 2025—26 में 1.4 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। विभाग के अनुसार शिशु स्वास्थ्य नवजात शिशु स्वास्थ्य की बेहतरी के लिए राज्य के 35 जिला अस्पतालों तथा 10 मेडिकल कॉलेजों में एसएनसीयू संचालित किए जा रहे हैं। वहीँ नवजातों में वित्तीय वर्ष 2025—26 के अंत तक ज्यादा डिलीवरी लोड वाले 115 प्राथमिक रेफरल अस्पतालों में एनबीएसयू को समृद्ध किया जाएगा, ताकि संस्थागत प्रसव हुए कमजोर नवजातों को बेहतर चिकित्सीय सुविधा मिल सके। पटना रुपसपुर की रहने वाली सुमन कहती हैं कि “जब मेरी बच्चा समय से पहले पैदा हुआ, तो हमारा दिल टूट गया था। पर अस्पताल में मिली विशेषज्ञ देखभाल ने उसे एक नई ज़िंदगी दी। आज वह स्वस्थ है—यह चमत्कार नियमित जाँच और डॉक्टरों के प्रयासों से ही संभव हो पाया है। हम हर माता-पिता से यही कहेंगे कि वे एक भी प्रसव पूर्व जाँच न छोड़ें।”
नियमित जाँच और बेहतर बुनियादी ढाँचा
इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान,पटना में शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ रिजवान अहमर कहते हैं प्री-टर्म जन्मों से बचने के लिए गर्भवती महिलाओं के लिए नियमित प्रसव पूर्व जाँच अत्यंत महत्वपूर्ण है। ये जाँचें उच्च रक्तचाप और मधुमेह जैसी मौजूदा स्वास्थ्य समस्याओं की पहचान करने में मदद करती हैं, जो समय से पहले प्रसव के जोखिम को बढ़ा सकती हैं। साथ ही, नवजात शिशु गहन देखभाल इकाइयों के बुनियादी ढांचे और प्रोटोकॉल को मजबूत करना भी समय की मांग है। इसके लिए प्राथमिक तौर पर सामुदायिक स्तर पर मातृ शिक्षा को मजबूत करने तथा रणनीतिक रूप से एनआईसीयू में पारिवारिक भागीदारी को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।
प्री टर्म से बचने में एएनसी कारगर
बीएमसी मेडिसीन जर्नल में छपी एक रिपोर्ट जो बिहार के संदर्भ में थी। इस रिपोर्ट के अनुसार प्री-मैच्योरिटी बिहार में नवजात मृत्यु का एक प्रमुख कारण है। इसमें जन्म के पहले दो दिनों (0-2 दिन) में होने वाली मौतों में 22.1%, 3 से 7 दिनों के बच्चों की मृत्यु में 33.7% और 8 से 27 दिनों के बच्चों की मृत्यु में 26.2% मृत्यु का कारण प्री-टर्म डिलीवरी थी। यह दर्शाता है कि प्री-टर्म बच्चों को जन्म के शुरुआती 27 दिनों तक लगातार उच्च जोखिम होता है। 2024 में छपी इंपैक्ट फैक्टर जर्नल के एक शोध के मुताबिक बिहार की गर्भवती महिलाओं में तीसरी तिमाही के अल्ट्रासाउंड में असामान्य डॉप्लर परिणाम और असामान्य एमनियोटिक द्रव की मात्रा का प्री-टर्म जन्म के साथ एक मजबूत संबंध पाया गया। इस शोध ने उच्च जोखिम वाली गर्भधारण की पहचान और प्रबंधन के लिए गर्भावस्था की तीसरी तिमाही में नियमित अल्ट्रासोनोग्राफी के महत्व पर ज़ोर दिया। एचएमआईएस आंकड़ों के मुताबिक राज्य में सितंबर माह तक लक्ष्य के विरूद्ध 83 फीसदी गर्भवती महिलाओं ने चार और उससे ज्यादा एएनसी कराए हैं।
स्वास्थ्य अधिकारियों के अनुसार प्री-टर्म शिशुओं की देखभाल केवल स्वास्थ्य संस्थानों का नहीं, बल्कि पूरे समुदाय का साझा दायित्व है। नियमित प्रसव पूर्व जाँच और उन्नत एसएनसीयू/एनबीएसयू सुविधाओं के माध्यम से, हम लाखों छोटे जीवन बचा सकते हैं।

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