December 1, 2025

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निष्क्रिय एफआरयू से जीवन रक्षक केंद्र तक का सफर, जहाँ सरकारी स्वास्थ्य सेवा पर लौटा भरोसा

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निष्क्रिय एफआरयू से जीवन रक्षक केंद्र तक का सफर, जहाँ सरकारी स्वास्थ्य सेवा पर लौटा भरोसा

-डॉ विनीता सिंह की सक्रियता से सक्रिय हुआ एफआरयू महुआ
-एचआरपी वाली गर्भवतियों की मॉनिटरिंग रही निर्णायक

वैशाली।

“अगर महुआ अस्पताल उस रात सक्रिय नहीं होता, तो मैं और मेरा बच्चा दोनों नहीं बचते। निजी अस्पताल का खर्च उठाना मेरे लिए नामुमकिन था,” भावुक होते हुए आरती देवी ने कहा। यह सिर्फ एक महिला का बयान नहीं, बल्कि उस समुदाय का विश्वास है जो सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं से पूरी तरह टूट चुका था। आरती का मामला जटिल था, और उन्हें तत्काल सिजेरियन की आवश्यकता थी।
आरती बताती हैं, मुझे खुद लग रहा था कि शायद मैं बच न पाऊँ, लेकिन डॉ. विनीता ने मुझे भरोसा दिया। यह सिर्फ अस्पताल नहीं, यह मेरा दूसरा जीवन है। अब मैं सरकारी अस्पताल पर पूरा भरोसा करती हूँ।”

महुआ एफआरयू, जो कभी स्वास्थ्य अधिकारियों की सूची में केवल ‘नाम के लिए’ एफआरयू में दर्ज था, आज सीमित मानव बल के बावजूद पिछले सात महीने में लगभग हर महीने 15 जटिल सिजेरियन ऑपरेशन कर रहा है। यह साधारण से एफआरयू का असाधारण प्रयास है, जो यह दर्शाता है कि इच्छाशक्ति और नवाचार, संसाधनों की कमी पर भारी पड़ सकते हैं।
प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ गुड़िया कुमारी कहती हैं कि एफआरयू का सक्रिय रहना ही ग्रामीण क्षेत्रों में जीवन बचाने की कुंजी है। “एफआरयू आपातकालीन प्रसूति देखभाल सुनिश्चित करने के लिए स्थापित किए जाते हैं। इसका निष्क्रिय होना सीधे तौर पर मातृ मृत्यु दर को बढ़ा देता है, क्योंकि ‘गोल्डन आवर’ में गर्भवती महिला को रेफर करने का समय नहीं मिलता।”

डॉ गुड़िया ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र के एसडीजी 3.1 का लक्ष्य (मातृ मृत्यु दर को 70 प्रति 100,000 जीवित जन्मों से कम पर लाना) ऐसे सक्रिय और मजबूत एफआरयू के बिना असंभव है। महुआ का यह पुनर्जीवन सीमित मानव बल के बावजूद यह सिद्ध करता है कि एक कुशल और प्रेरित टीम (मानव बल) ही संस्थान को गतिमान रखने में सबसे बड़ा सपोर्ट होती है।

डॉ विनीता ने अपनाया ऑन-कॉल सिस्टम:

महुआ एफआरयू के पुनर्जीवन की कहानी की मुख्य सूत्रधार हैं डॉ. विनीता, जिन्होंने चुनौती को अवसर में बदल दिया। डॉ. विनीता ने सबसे पहले उपलब्ध संसाधनों का अधिकतम उपयोग किया। उन्होंने पुराने उपकरणों को ठीक से स्ट्रेलाइज कराने , आवश्यक दवाओं का स्टॉक सुनिश्चित करने और स्थानीय प्रशासन से समन्वय स्थापित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। मानव बल की कमी के बावजूद, उन्होंने ऑन-कॉल सिस्टम और मल्टी-टास्किंग की रणनीति अपनाई, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि किसी भी आपात स्थिति में टीम तैयार रहे। उनकी लगन ने अस्पताल के स्टाफ को भी प्रेरित किया, जिससे महुआ एफआरयू में एक नई ऊर्जा का संचार हुआ। जून 2025 से वर्तमान समय तक 75 प्रतिशत सिजेरियन खुद डॉ विनीता ने किया।

गर्भवती महिलाओं को एफआरयू तक लाने का माध्यम: ‘पहुँच’ ही सफलता की कुंजी

एफआरयू को सक्रिय करने से ज्यादा बड़ी चुनौती यह थी कि जटिल मामलों को समय पर यहाँ तक कैसे लाया जाए। डॉ. विनीता और उनकी टीम ने एक मजबूत सामुदायिक जुड़ाव और रेफरल तंत्र विकसित किया। इसके लिए महुआ एफआरयू की टीम ने तीन मुख्य स्तंभों पर ध्यान दिया। जिसमें आशा एवं एएनएम का सशक्तिकरण किया गया। इसमें उन्हें स्पष्ट निर्देश था कि वे उच्च जोखिम वाली गर्भवती महिलाओं की पहचान करें और प्रसव की संभावित तारीख से पहले ही उन्हें महुआ एफआरयू के बारे में जानकारी दें।
आपात स्थिति में 102 एम्बुलेंस सेवा का त्वरित समन्वय सुनिश्चित किया गया, जिससे जटिल मामलों को तुरंत रेफर किया जा सके। एएनएम द्वारा मासिक बैठकों में जटिल मामलों की सूची बनाकर एफआरयू टीम को साझा की जाती है, जिससे टीम मानसिक रूप से तैयार रहे।

आशा कार्यकर्ता: समुदाय का पुल

डॉ विनीता कहती हैं कि एफआरयू के सक्रिय होने में आशा कार्यकर्ताओं की भूमिका अहम रही। डबरु पंचायत की आशा कार्यकर्ता शांति देवी के अनुसार उनका काम अब सिर्फ लोगों को अस्पताल तक लाना नहीं, बल्कि उन्हें भरोसा दिलाना है।
वहीं आशा सुशीला देवी कहती हैं, “पहले लोग महुआ आने से कतराते थे क्योंकि वहां पहले फिक्स दिन ही सिजेरियन हुआ करता था। हम उन्हें सदर अस्पताल ले जाते थे। यह उनके लिए काफी मुश्किल हो जाता था। लेकिन जब महुआ एफआरयू में डॉ. विनीता ने एक के बाद एक जटिल केस बचाए, तो समुदाय खुद अपनी जान बचाने के लिए महुआ एफआरयू की तरफ आ रहा है। हमें अब अपने काम पर गर्व महसूस होता है।”

निष्क्रिय एफआरयू के लिए मॉडल:

महुआ एफआरयू की कहानी यह दर्शाती है कि दृढ़ इच्छाशक्ति और प्रभावी सामुदायिक सहयोग से एक निष्क्रिय संस्था भी जीवन रक्षक केंद्र बन सकती है। यह सुविधा न केवल काम कर रही है, बल्कि मानसिक रूप से अनेक माताओं और उनके शिशुओं का जीवन बचाकर समुदाय का सशक्तिकरण कर रही है।अंत में हम कह सकते हैं कि महुआ का यह मॉडल अन्य निष्क्रिय एफआरयू के लिए एक सर्वोत्तम उदाहरण है।
महुआ एफआरयू की सफलता की कहानी दर्शाती है कि सही नेतृत्व और जमीनी स्तर पर प्रयास से, भारत अपने वैश्विक स्वास्थ्य लक्ष्यों को निश्चित रूप से प्राप्त कर सकता है।

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