दलित मुस्लिमों पर से हटे धार्मिक प्रतिबंध की मांग तेज़
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दलित मुस्लिमों पर से हटे धार्मिक प्रतिबंध की मांग तेज़
पटना, 10 अगस्त 2025 — ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम इत्तेहाद महाज़ की बिहार प्रदेश इकाई ने रविवार को “नाइंसाफी दिवस” के रूप में आयोजन किया। इस मौके पर दलित मुस्लिमों के संवैधानिक अधिकारों और न्याय की बहाली के लिए आवाज़ बुलंद की गई।
सभा की अध्यक्षता करते हुए मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व सांसद इरफान अली जामियावाला ने कहा कि दलित मुस्लिमों के साथ संवैधानिक नाइंसाफी 10 अगस्त 1950 से शुरू हुई, जब राष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद 341(1) के तहत आदेश जारी कर अनुसूचित जाति का दर्जा केवल हिंदू धर्म के लोगों को दिया। बाद में 1956 में सिख और 1990 में बौद्ध धर्म के लोगों को इसमें शामिल किया गया, लेकिन मुस्लिम और ईसाई दलितों को आज तक इस अधिकार से वंचित रखा गया।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
संविधान सभा बहस (1948-49): कई सदस्यों, जिनमें जोगेंद्रनाथ मंडल और अल्पसंख्यक प्रतिनिधि शामिल थे, ने मांग की थी कि जातिगत आधार पर सभी धर्मों के दलितों को समान अधिकार मिलना चाहिए।
राष्ट्रपति आदेश, 1950: 10 अगस्त 1950 को जारी आदेश में “केवल हिंदू” शब्द शामिल किया गया, जिससे मुस्लिम और ईसाई दलित बाहर हो गए।
सिख व बौद्ध संशोधन: 1956 (सिख) और 1990 (बौद्ध) में संशोधन कर उन्हें अनुसूचित जाति में शामिल किया गया।
कोर्ट केस: सुप्रीम कोर्ट में Soosai vs Union of India (1985) और State of Kerala vs Chandramohanan (2004) जैसे मामलों में भी यह मुद्दा उठा, लेकिन अब तक कोई संवैधानिक सुधार नहीं हुआ।
रंगनाथ मिश्रा आयोग (2007): आयोग ने स्पष्ट सिफारिश दी थी कि अनुच्छेद 341 से धार्मिक प्रतिबंध हटाया जाए और मुस्लिम व ईसाई दलितों को SC में शामिल किया जाए।
श्री जामियावाला ने कहा कि यह प्रावधान न केवल समानता के सिद्धांत के खिलाफ है, बल्कि यह सामाजिक न्याय की मूल भावना को ठेस पहुंचाता है। उन्होंने केंद्र सरकार से मांग की कि अनुच्छेद 341 से धार्मिक प्रतिबंध को तत्काल हटाया जाए, ताकि सभी धर्मों के दलितों को समान अधिकार मिल सके।
सभा में प्रस्ताव पारित कर घोषणा की गई कि इस मुद्दे को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर जनआंदोलन तेज किया जाएगा और राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री एवं संसद तक आवाज पहुंचाई जाएगी।