August 26, 2021

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नेपाल की सरज़मीन से बहुत गहरा रिश्ता रहा है आला हज़रत और ख़ानदाने आला हज़रत का – मुफ्ती सलीम नूरी /रिपोर्ट नसीम रब्बानी

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नेपाल की सरज़मीन से बहुत गहरा रिश्ता रहा है आला हज़रत और ख़ानदाने आला हज़रत का – मुफ्ती सलीम नूरी /रिपोर्ट नसीम रब्बानी

नेपाल में भी मनाया गया उर्स-ए-नूरी, मुफ्ती सलीम नूरी ने भी ऑनलाइन किया खिताब।

नेपाल की सरज़मीन पर कई यादगार धरोहर हैं ख़ानदाने आलाहज़रत के।

नेपालगंज की जामा मस्जिद में रज़ा हाॅल है रेहाने मिल्लत की अहम यादगार।

नेपालगंज की नूरी मस्जिद आज भी याद दिलाती है मुफ्ती ए आज़म हिन्द की।

मंज़रे इस्लाम की ई-पाठशाला द्वारा मरकज़े अहले सुन्नत से नेपाली मुसलमानों के मज़बूत रिश्तों पर डाला गया प्रकाश।

बरेली, उत्तर प्रदेश।

आला हज़रत और आलाहज़रत के ख़ानदान की धार्मिक, शैक्षिक और रूहानी व सूफियाना खि़दमात का डंका यूँ तो विश्व के बेशुमार देशों में बज रहा है। विश्व स्तर पर आलाहज़रत और ख़ानदाने आलाहज़रत की एक अहम शिनाख़्त् क़ायम है। विश्व के कई देशों में आलाहज़रत के शहज़ादगान की निशानियाँ आज भी उनकी याद दिलाती है। पड़ोसी मुल्क नेपाल में भी ख़ानदाने आलाहज़रत की कई अहम निशानियाँ हैं जो आज भी नेपाली मुसलमानों के मरकज़े अहले सुन्नत और ख़ानदाने आलाहज़रत से उनके अटूट रिश्तों को दर्शाती हैं। आज मंज़रे इस्लाम की ई-पाठशाला द्वारा आयोजित एक आॅनलाइन कार्यक्रम के माध्यम से मंज़रे इस्लाम के वरिष्ठ शिक्षक मुफ्ती सलीम नूरी ने अपने संबोधन में यह विचार व्यक्त किये। मीडिया प्रभारी नासिर कुरैशी ने बताया कि जनपद कपिल वस्तु के शहर ‘‘तौलहवाँ’’ स्थित जामिया बरकातिया में मुफ्ती ए आज़म हिन्द के उर्स का एक कार्यक्रम आयोजित हुआ। जिसमें मुफ्ती सलीम नूरी ने गूगल मीट द्वारा इस कार्यक्रम में सम्मिलित लोगों को संबोधित करते हुए बताया कि नेपाल की सरज़मीन से और यहाँ के मुसलमानों से आलाहज़रत, ख़ानदाने आलाहज़रत, मरकज़े अहले सुन्नत और यादगारे आलाहज़रत जामिया रज़विया मंज़रे इस्लाम का बहुत गहरा और पुराना रिश्ता रहा है। नेपाल की सरज़मीन पर रहने वाले बेशुमार लोग खानदाने आलाहज़रत के बुज़्ाुर्गों से हर दौर में मुरीद होते रहे हैं। नेपाल के बहुत से गरीब छात्र बरेली के मदरसा मंज़रे इस्लाम में रहकर शिक्षा प्राप्त करते रहे हैं। यहाँ से शिक्षा की रौशनी ले जाकर उन्होंने नेपाल के पसमांदा (पिछड़े) इलाकों और क्षेत्रों को प्रकाशित करने में अहम भूमिका निभाई है। आलाहज़रत के शहज़ादे मुफ्ती ए आज़म ए हिन्द ने नेपाल के कई पिछड़े क्षेत्रों में जाकर नेपाली मुसलमानों को शिक्षित करने का काम किया है उनकी बहुत सी यादगारें आज भी नेपाल की सरज़मीन पर पायी जाती हैं। जनपद बांके के एक शहर नेपालगंज के मोहल्ला गणेशपुर की भव्य और अति सुन्दर ‘‘नूरी मस्जिद’’ आज भी मुफ्ती ए आज़म ए हिन्द अल्लामा मुस्तफा रज़ा खाँ की रूहानी याद दिलाती है। इस भव्य मस्जिद का निर्माण मुफ्ती ए आज़म ए हिन्द के एक खास मुरीद हाजी रमज़ान साहब ने अपने पीरो मुर्शिद के इशारे पर उनकी याद में कराया था। इसी तरह नेपालगंज की भव्य ऐतिहासिक जामा मस्जिद में स्थित मदरसा फैजुन नबी का आलीशान और भव्य ‘‘रज़ा हाॅल’’ दरगाहे आलाहज़रत के पूर्व सज्जादा नशीन नबीरा ए आलाहज़रत हज़रत अल्लामा रेहान रज़ा खाँ ‘‘रहमानी मियाँ’’ जो दरगाह प्रमुख हज़रत सुब्हानी मियाँ साहब के वालिद साहब (पिताजी) हैं, उनकी याद दिलाता है। हज़रत रेहाने मिल्लत ने इस रज़ा हाॅल का शिलान्यास 1980-81 के अपने नेपाल दौरे के समय किया था। नेपालगंज की जामा मस्जिद में यह रज़ा हाॅल देखने वालों को दर्शाता है कि नेपाल और नेपाल के मुसलमानों से मरकज़े अहले सुन्नत का रिश्ता कितना मज़बूत और कितना पुराना रहा है। आज भी यहाँ के सुन्नी मुसलमान मरकज़े अहले सुन्नत दरगाहे आलाहज़रत बरेली शरीफ को टूटकर चाहते हैं।

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