May 1, 2022

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मजदूरों की कड़ी मेहनत के बल पर ही राष्ट्र तरक्की करता है।लेकिन भारत का श्रमिक वर्ग श्रम कल्याण सुविधाओं के लिए तरस रहा है।

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मजदूरों की कड़ी मेहनत के बल पर ही राष्ट्र तरक्की करता है।लेकिन भारत का श्रमिक वर्ग श्रम कल्याण सुविधाओं के लिए तरस रहा है।

दरभंगा जिला संवाददाता (गुड्डू राज)भारत सहित दुनिया के सभी देशों में एक मई को मजदूर दिवस मनाया जाता है, जिसका मुख्य उद्देश्य उस दिन मजदूरों की भलाई के लिए काम करने व मजदूरों में उनके अधिकारों के प्रति जागृति लाना होता है। मगर आज तक तो कहीं ऐसा हो नहीं पाया है। कोरोना महामारी की मार सबसे ज्यादा मजदूर वर्ग पर पड़ी है। इस कारण देश का मजदूर सबसे ज्यादा बदहाल है। मजदूर दिवस दुनिया के सभी कामगारों, श्रमिकों को समर्पित होता है। किसी भी राष्ट्र की प्रगति करने का प्रमुख भार मजदूर वर्ग के कंधों पर ही होता है। मजदूर वर्ग की कड़ी मेहनत के बल पर ही राष्ट्र तरक्की करता है। लेकिन भारत का श्रमिक वर्ग श्रम कल्याण सुविधाओं के लिए आज भी तरस रहा है। हमारे देश में मजदूरों का शोषण आज भी जारी है। समय बीतने के साथ मजदूर दिवस को लेकर श्रमिक तबके में अब कोई खास उत्साह नहीं रह गया है। बढ़ती महंगाई और पारिवारिक जिम्मेदारियों ने भी मजदूरों के उत्साह का कम कर दिया है। अब मजदूर दिवस इनके लिए सिर्फ कागजी रस्म बनकर रह गया है।

*गांव में खेती के प्रति लोगों का रुझान कम होना मजदूरों का शहरों की तरफ पलायन*

मजदूर वर्ग आज भी अत्यंत ही दयनीय स्थिति में रह रहा है।उनको न तो मालिकों द्वारा किए गए कार्य की पूरी मजदूरी दी जाती है और ना ही अन्य वांछित सुविधाएं उपलब्ध करवाई जाती है। गांव में खेती के प्रति लोगों का रुझान कम हो रहा है। इस कारण बड़ी संख्या में लोग मजदूरी करने के लिए शहरों की तरफ पलायन कर जाते हैं। जहां ना उनके रहने की कोई सही व्यवस्था होती है नही उनको कोई ढ़ग का काम मिल पाता है। मगर आर्थिक कमजोरी के चलते शहरों में रहने वाले मजदूर वर्ग जैसे तैसे कर वहां अपना गुजर-बसर करते हैं।

*मजदूरों के झुग्गी झोपड़ी में न तो शौचालय ना रोशनी की सुविधा सिर्फ जाती धर्म पर राजनीतिक कर रहे है नेता*

बड़े शहरों में झोंपड़ पट्टी बस्तियों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है। जहां रहने वाले लोगों को कैसी विषम परिस्थितियों का सामना करता है। इसको देखने की न तो सरकार को फुर्सत है ना हीं किसी राजनीतिक दलों के नेताओं को। सिर्फ जाती धर्म का भेद भाव रंग देने में रहते है।झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले मजदूरों को शौचालय जाने के लिए भी घंटों लाइनों में खड़ा रहना पड़ता है। झोपड़ पट्टी बस्तियों में ना रोशनी की सुविधा रहती है।

*12-12 घंटे लगातार काम करने वाले मजदूरों को एक छप्पर तक नसीब नही हो पाता यह कैसे मजबूरी जो जीने के लिए वेब्स*

मजदूरों को ना पीने को साफ पानी मिलता है और ना ही स्वच्छ वातावरण। शहर के किसी गंदे नाले के आसपास बसने वाली झोपड़ पट्टियों में रहने वाले गरीब तबके के मजदूर कैसा नारकीय जीवन गुजारते हैं। उसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता है। मगर इसको अपनी नियति मान कर पूरी मेहनत से अपने मालिकों के यहां काम करने वाले मजदूरों के प्रति मालिकों के मन में जरा भी सहानुभूति के भाव नहीं रहते हैं। उनसे 12-12 घंटे लगातार काम करवाया जाता है। घंटो धूप में खडे रहकर बड़ी बड़ी कोठियां बनाने वाले मजदूरों को एक छप्पर तक नसीब नही हो पाता है।

*मजदूरों से समय से अधिक काम लिया जाता है कारखानों में विरोध करने पर काम से हटाने की दी जाती है धमकी। मजबूरी में मजदूर करते है कारखाने में काम*

देश में आज सबसे ज्यादा कोई प्रताड़ित व उपेक्षित है तो वो मजदूर वर्ग है। मजदूरो की सुनने वाला देश में कोई नहीं हैं। कारखानो में काम करने वाले मजदूरो पर हर वक्त इस बात की तलवार लटकती रहती है कि ना जाने कब मालिक उनकी छटनी कर काम से हटा दे। कारखानो में कार्यरत मजदूरों से निर्धारित समय से अधिक काम लिया जाता है विरोध करने पर काम से हटाने की धमकी दी जाती है। मजबूरी में मजदूर कारखाने के मालिक की शर्तों पर काम करने को मजबूर होता है। कारखानो में श्रम विभाग के मापदण्डो के अनुसार किसी भी तरह की कोई सुविधायें नहीं दी जाती है।

*आजादी के इतने सालो में भले ही देश में बहुत कुछ बदल गया। लेकिन मजदूरों के हालात तो आज भी नहीं बदले हैं तो फिर श्रमिक वर्ग किस लिये मजदूर दिवस मनाये।*

कई कारखानों में तो मजदूरों से खतरनाक काम करवाया जाता है जिस कारण उनको कई प्रकार की बिमारियां लग जाती है। कारखानों में मजदूरो को पर्याप्त चिकित्सा सुविधा,पीने का साफ पानी,विश्राम की सुविधा तक उपलब्ध नहीं करवायी जाती है। मालिको द्वारा निरंतर मजदूरों का शोषण किया जाता है मगर मजदूरों के हितों की रक्षा के लिये बनी मजदूर यूनियनो को मजदूरो की बजाय मालिको की ज्यादा चिंता रहती है। हालांकि,कुछ मजदूर यूनियने अपना फर्ज भी निभाती है मगर उनकी संख्या कम है। हमारे देश में मजदूरों की स्थिति सबसे भयावह होती जा रही है। देश का मजदूर दिन प्रतिदिन और अधिक गरीब होता जा रहा है। दिन रात रोजी-रोटी के जुगाड़ में जद्दोजहद करने वाले मजदूर को तो दो जून की रोटी मिल जाए तो मानों सब कुछ मिल गया। आजादी के इतने सालो में भले ही देश में बहुत कुछ बदल गया होगा। लेकिन मजदूरों के हालात तो आज भी नहीं बदले हैं तो फिर श्रमिक वर्ग किस लिये मजदूर दिवस मनाये।

*सरकार मजदूरो के हित की योजनाओं के बड़े-बड़े विज्ञापन जारी करती है। जिनमें मजदूरों के हितों की बहुत सी बाते लिखी होती हैं मगर ये सिर्फ कहने सुनने में ही अच्छा लगता है हकीकत इससे कहीं उलटी हैं।*

मजदूर दिवस के अवसर पर सरकारे मजदूरो के हित की योजनाओं के बड़े-बड़े विज्ञापन जारी करती है। जिनमें मजदूरों के हितों की बहुत सी बाते लिखी होती हैं। किन्तु उनमें से अमल किसी बात पर नहीं हो पाता है। देश में सभी राजनीतिक दलों ने अपने यहां मजदूर संगठन बना रखे हैं। सभी दल दावा करते हैं कि उनका दल मजदूरो के भले के लिये काम करता है। मगर ये सिर्फ कहने सुनने में ही अच्छा लगता है हकीकत इससे कहीं उलटी हैं।

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