असाधारण प्रतिभा के कालजयी रचनाकार थे प्रेमचंद: प्रधानाचार्य
1 min read*असाधारण प्रतिभा के कालजयी रचनाकार थे प्रेमचंद*: – – प्रधानाचार्य
ताजपुर, समस्तीपुर से अब्दुल कादिर की रिपोर्ट
ताजपुर /समस्तीपुर । डॉ. लोहिया कर्पूरी विश्वेश्वर दास महाविद्यालय ताजपुर, समस्तीपुर में ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय दरभंगा के स्वर्ण जयंती समारोह के बैनर तले प्रधानाचार्य डॉ.प्रभात रंजन कर्ण की अध्यक्षता में प्रेमचंद जयंती की पूर्व संध्या पर “वर्तमान संदर्भ में प्रेमचंद के विचारों की प्रासंगिकता”विषय पर निबंध प्रतियोगिता सह व्याख्यान का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम हिंदी और उर्दू विभाग के संयुक्त तत्वावधान में सम्पन्न हुआ। प्रतियोगिता के निर्णायक मंडल में हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. विनीता कुमारी,डॉ. बलराम कुमार और उर्दू विभागाध्यक्ष डॉ. शहनाज आरा रहीं।
प्रधानाचार्य ने सभा को संबोधित करते हुए बताया कि प्रेमचंद असाधारण प्रतिभा के धनी और कालजयी रचनाकार थे वे भविष्य द्रष्टा थे। वे मानवीय संवेदना के लेखक थे। बाबू देवकीनंदन खत्री के ऐय्यारी एवं तिलिस्मी दुनिया के उपन्यासों, यथा चंद्रकांता संतति इत्यादि के बाद प्रेमचंद ने आम जनता की समस्या को साहित्य में जगह दिया।
वहीं हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. विनीता कुमारी ने बताया कि प्रेमचंद का विचार कल भी प्रासंगिक था आज भी है और आने वाले समय में भी रहेगा क्योंकि उनका समग्र साहित्य सामाजिक समस्या को उदघाटित करता है।
हिंदी विभाग के शिक्षक डॉ.बलराम कुमार ने प्रेमचंद की 142 वीं जयंती पर उनके समग्र साहित्यिक अवदान को रेखांकित करते हुए बताया कि हजारी प्रसाद द्विवेदी लिखते हैं कि “प्रेमचंद शताब्दियों से पद- दलित ,अपमानित,निरूपेक्षित कृषकों की आवाज़ थे।पर्दे में कैद, पद-पद पर लांछित,असहाय नारी जाति की महिमा के जबर्दस्त वकील थे। उत्तर भारत की जनता का आचार-विचार,रहन-सहन,सूझ-बूझ,आशा-आकांशा व दुख:सुख जानना चाहते हैं तो मुंशी प्रेमचंद जैसा उत्तम परिचायक आपको नहीं मिल सकता। वह झोपड़ियों से लेकर महलों तक इतने कौशलपूर्ण और प्रमाणित भाव से प्रेमचंद ही ले जा सकते हैं” डॉ कुमार ने बताया कि उनके साहित्य में सामाजिक समस्या जैसे जमींदारों के द्वारा किसानों के शोषण की समस्या,सूदखोरों के शोषण से पिसते ग्रामीणों की समस्या ,छुआछूत की समस्या, संयुक्त परिवार की समस्या ,व्यक्तिगत जीवन की समस्या,रूढ़ि,अंध-विश्वास,भ्रष्टाचार आदि का सजीव चित्रण उनके साहित्य में उपलब्ध है जो वर्तमान सामाजिक जीवन में प्रासंगिक है। इसलिए उन्हें युगद्रष्टा कहने में अतिश्योक्ति नहीं होगी।
‘वर्तमान संदर्भ में प्रेमचंद के विचारों की प्रांसगिकता’ विषय पर निबंध प्रतियोगिता में कुल 42 छात्र/छात्राएं सम्मिलित हुए।प्रतियोगिता का परिणाम 05अगस्त 2022 को निर्णायक मंडल द्वारा घोषित किया जाएगा। मंच संचालन हिंदी विभाग के प्राध्यापक डॉ.बलराम कुमार एवं धन्यवाद ज्ञापन उर्दू विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ शहनाज आरा ने किया। मौके पर, डॉ. जगदीश प्रसाद वैश्यन्त्री, डॉ. उदय कुमार,श्री रजत शुभ्रदास, डॉ.हुस्न आरा,डॉ. हरिमोहन प्रसाद सिंह,डॉ. संजीव कुमार विद्यार्थी ,श्री आशीष कुमार ठाकुर,डॉ. सुमन कुमार पोद्दार, डॉ.शाजिया परवीन, डॉ.अनील शर्मा ,डॉ गायत्री कुमारी,डॉ. कुमारी शशि प्रभा, डॉ दुर्गा पटवा,अजीत कुमार, सौरभ कुमार, तबरेज आलम, रंधीर कुमार के साथ छात्र/छात्राओं में अर्चना कुमारी, संगति कुमारी ,लोकेश आदि उपस्थित रहे।