April 27, 2024

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बिहार के प्रशिक्षु अफ़सरों ने कदमों से नापा कंचनजंगा

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बिहार के प्रशिक्षु अफ़सरों ने कदमों से नापा कंचनजंगा

पटना: नवनियुक्त अफ़सरों को प्रशिक्षण देने के लिए सरकार द्वारा गया में स्थापित बिपार्ड (बिहार लोक प्रशासन एवं ग्रामीण विकास संस्थान) संस्था से 800 में से शारीरिक दक्षता के आधार पर चुने हुए छप्पन नवनियुक्त अफ़सरों की टीम ने सिक्किम में गोचला ट्रेक पर 15,100 फ़ीट की ऊँचाई तय कर बिहार का नाम रौशन करने का काम किया है। प्रशिक्षुओं की टीम युकसोम से लगभग 92 किमी लंबा सफर तय करते हुए 15,100 फीट की ऊंचाई पर स्थित व्यूप्वाइंट वन तक पहुँचे। यह माउंट कंचनजंगा के दक्षिण-पश्चिमी हिस्से के करीब हैं, जो दुनिया का तीसरा सबसे ऊंचा पर्वत है। बड़ी बात है कि इसमें 15 नवनियुक्त महिला अफ़सर भी शामिल है। प्रशिक्षुओं को दो टीमों में बांटकर 12 दिनों में इस उपलब्धि को हासिल किया गया। इस ट्रैक का मक़सद मानसिक तथा शारीरिक क्षमता का विकास करना है। विषम से विषम परिस्थितियों में भी कैसे धैर्य के साथ आगे बढ़ते हैं तो वह इस ट्रैक से प्रशिक्षुओं ने सीखा। प्रशिक्षुओं का मनोबल ऊँचा हो और वह अपने अंदर की मजबूती तथा कमजोरी को जाने इसके लिए ही इस ट्रैक की अवधारणा रखी गई है। पहली टीम का नेतृत्व पीटीआई दिनेश कुमार ने किया। दूसरी टीम का नेतृत्व पीटीआई छोटेलाल सिंह ने किया। प्रशिक्षुओं में से पहली टीम के लीडर अशरफ आलम तो दूसरी टीम का लीडर अजय कुमार सिंह को बनाया गया। सिक्किम रवाना होने से पहले बिपार्ड गया के डिप्टी डायरेक्टर चेत नारायण राय, सीनियर असिस्टेंट डायरेक्टर आर्य गौतम, असिस्टेंट डायरेक्टर दीपक कौशिक ने झंडा दिखा कर विदाई दी।

दो महीना के अथक प्रशिक्षण के बाद संभव हो पाया:

सभी चयनित प्रशिक्षुओं को दो महीना के कड़ी परिश्रम के बाद इस ट्रैक के लिए तैयार किया गया। रोज सुबह 12 किलोमीटर और शाम में लगभग छः किलोमीटर दौड़ना होता। साथ ही अलग-अलग तरीक़े के व्यायाम भी करना पड़ता। बीच-बीच में प्रतिस्पर्धा दौड़ भी होती रही। ब्रह्म योनि पर्वत पर दस किलोग्राम वजन के साथ भी सभी प्रशिक्षुओं को दौड़ाया गया। जिससे कि उन्हें वजन लेकर चलने में परेशानी ना हो। बीच में जो शारीरिक रूप से अनफिट हुए वे टीम से अलग होते गए। इस तरह से अंतिम रूप से 56 प्रशिक्षु बचे। जिन्होंने इस कठिन लक्ष्य को पूरा किया।

कंफर्ट ज़ोन से बाहर आकर ही सफलता मिलती है: दिनेश कुमार

टीम वन के इंस्ट्रक्टर पीटीआई एक्स आर्मी मैन दिनेश बताते हैं कि कंफर्ट ज़ोन से बाहर आकर ही कुछ सीखने को मिलता है। अगर इंसान में चाहत हो तो वह क्या कुछ नहीं कर सकता है। ऊँचे से ऊँचे ऊँचाई को वह छू सकता है। कहा भी गया है कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। दो महीना के अथक मेहनत के बाद यह सफलता मायने रखता है। यह ऊर्जा प्रशिक्षुओं को भविष्य में बहुत काम आएगा।

टीम के प्रत्येक सदस्य को साथ लेकर चलना चुनौती था: छोटेलाल

टीम टू के इंस्ट्रक्टर पीटीआई एक्स आर्मी मैन छोटेलाल सिंह पूरे जोश के साथ बताते है जिस तरह से हमने सभी चयनित प्रशिक्षुओं को ट्रेनिंग दी मुझे पूरा विश्वास था इसमें से हर सदस्य सफलतापूर्वक ट्रैक पूरा करेगा। ऐसा हुआ भी। जब सारे लोग ऊँचाई तक पहुँच गए तो मैं ख़ुद को नहीं रोक पाया और भावुक होकर मेरे आँसू छलक आए। कठिन मेहनत और तप का परिणाम यही होता है। मैं बिपार्ड के तमाम लोगों का आभारी हूँ जिन्होंने मुझ पर भरोसा कर के यह दायित्व मुझे सौंपा। आप अगर एडवेंचर में रुचि रखते हैं तो कभी भी ट्रेनिंग में काम चोरी नहीं करें। आर्मी का एक वसूल है कि ट्रेनिंग में जितना पसीना बहेगा जब जंग होगी तो उतना ही कम खून बहेगा। यह बात सब जगह लागू होता है इसलिए ट्रेनिंग का बहुत महत्व है। हमने ट्रेनिंग पर इसलिए बहुत ज़ोर दिया।इसका परिणाम रहा कि शत प्रतिशत सफलता हमें प्राप्त हुई।

सब की अपनी- अपनी कहानी:

करुणा कश्यप, प्रखंड पंचायत राज पदाधिकारी, पिता पवन कुमार चौधरी जो बाजीतपुर गाँव, जिला मुजफ्फरपुर से आती हैं ने बताया की ‘मेरे लिए यह ट्रैक खुद को जानने का एक बड़ा मौका था। साधारण हालात में तो हर कोई प्रदर्शन कर पाता है पर जब दुर्गम इलाका हो और विषम परिस्थिति हो तब प्रदर्शन कर पाना साधारण बात नहीं होती है। ऐसे हालात में अपना सर्वश्रेष्ठ दे पाना मेरे लिए बहुत बड़ी सफलता है।’
प्रशांत कुमार, अनुमंडल कल्याण पदाधिकारी बताते है ‘कंचनजंगा की ट्रेकिंग मेरे लाइफ का पहला अनुभव था। इसके लिए हमने बिपार्ड में दो महीने की कड़ी मेहनत की। हमलोगो के लिए यह काफी साहसिक भरा कार्य था। इस दौरान हमने माइनस तापमान (लगभग -13°c) में दुर्गम रास्तों और पहाड़ की खड़ी चढ़ाई को जीतते हुए अपनी मंज़िल गोएचाला हिल पे तिरंगा झंडा फहराया जिसका अनुभव अद्वितीय,अद्भुत व अविस्मरणीय है।’ जयकृष्ण यादव, अनुमंडल पिछड़ा वर्ग व अत्यंत पिछड़ा वर्ग कल्याण पदाधिकारी अपने ट्रैक को कुछ इस प्रकार याद करते है ‘एक रोमांचकारी और अविस्मरणीय अनुभव लेकर लौटा हूं। अपनी सीमाओं से परे होकर प्रकृति के बहुत करीब जाना एक सुखद एहसास रहा।’

कंचनजंगा ट्रेक हिमालय के खूबसूरत दृश्यों के बीच एक अनुभवपूर्ण और रोमांचक यात्रा है:

अनुराग कुमार, एमईओ बताते है ‘कंचनजंगा ट्रेक हिमालय के खूबसूरत दृश्यों के बीच एक अनुभवपूर्ण और रोमांचक यात्रा है। यह सिक्किम के उत्तर पश्चिम भाग में स्थित है और प्राकृतिक सौंदर्य की अनगिनत दृश्यों को प्रदर्शित करता है। इस ट्रेक में घने वन, चारों ओर सुंदर पहाड़ी दृश्य, गाँवों की रंगीन जीवनशैली, और कुछ अद्वितीय प्राकृतिक आकर्षण शामिल हैं। यह ट्रेक उन लोगों के लिए उत्तम है जो प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेना और अपने साथीयों के साथ एक साथ समय बिताना चाहते हैं।’

सर और दोस्तों का विश्वास मुझ पर रहा यह बड़ी बात है: अजय

असिस्टेंट डायरेक्टर सह डिस्ट्रिक्ट पब्लिक रिलेशन ऑफ़िसर के तौर पर प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे अजय कुमार सिंह बताते हैं कि जब उनको प्रशिक्षुओं में से लीडर की भूमिका दी गई तो उन्हें एक मर्तबा विश्वास नहीं हुआ। भारत गुरुओं का देश रहा है। सफलता में गुरु का बहुत योगदान रहता है। यह भारत के गुरु शिष्य परंपरा से जोड़ता है । पूरे ट्रेनिंग में ऐसा ही एक भी दिन नहीं होगा जब मैंने नागा किया हो। शायद मेरी मेहनत ही वह आधार थी जिसकी बदौलत मैं अपने गुरुजनों और दोस्तों का विश्वास जीत पाया।

एक बार तो ऐसा लगा की नहीं हो पाएगा:

कामना कुमारी, लेबर इनफ़ोर्समेंट ऑफ़िसर अपने अनुभवों को साझा करते हुए बोलती हैं कि अंतिम की चढ़ाई काफ़ी कठिनाई भरी थी। हम लोग रात के बारह बजे अंतिम चढ़ाई के लिए निकले थे। रास्ते काफ़ी दुर्गम थे और खड़ी चढ़ाई थी, हमारी हौसलों का परीक्षा ले रही थी। एक वक़्त ऐसा आया जब ऐसा लगा की नहीं हो पाएगा। लेकिन अपने आप पर नियंत्रण कर के हिम्मत रखते हुए आगे बढ़ते गयी और जब ऊपर पहुँची तो लगा जैसे जग जीत लिया।
पूर्णिया की प्रशिक्षु अधिकारी नमिता कुमारी, ब्लॉक वेलफेयर ऑफ़िसर बताती हैं कि ‘लगभग 16,000 फ़ीट की ऊँचाई पर देश की तिरंगा को लहराना गर्व का विषय है। यह सोचकर बहुत सुकून आता है कि हमने इतनी ऊँचाई को तय किया। यह मेरे जीवन का अभूतपूर्व और अविस्मरणीय क्षण रहा। जितना खूबसूरत सफर था उतनी ही खूबसूरत मंजिल थी।’

घटते ऑक्सीजन के स्तर में फिट रहना सबसे बड़ी चुनौती:

सिवान के सीनियर डिप्टी कलेक्टर के तौर पर प्रशिक्षण प्राप्त कर रही शालू कुमारी बताती है कि रोज़ शाम में ऑक्सीजन का स्तर देखा जाता था।80 से अगर नीचे आ जाता तो हमें आगे बढ़ने से रोक दिया जाता।बाहर भले ही ऑक्सीजन की मात्रा ऊँचाई के साथ कम हो रहा हो पर हमारे अंदर ऑक्सीजन की मात्रा सामान रहना चाहिए। यह कठिन चुनौती थी। बहरहाल सब कुछ अच्छा रहा और हमने सफलतापूर्वक अपने मक़सद को प्राप्त किया। इससे ख़ुशी का विषय कुछ नहीं हो सकता।नए सफ़र और नए दोस्तों के साथ यादगार पल हमने जिया। मैं ईश्वर का शुक्रगुज़ार हूँ कि उन्होंने मुझे इसके लिए आत्म बल दिया।

टीम 2 से इन लोगों ने मारी बाज़ी:

छोटेलाल सिंह PTI, आलोक कुमार राय, BWO, अनिल कुमार, LEO अल्पीका, RDO, राजन कुमार, MEO, अभिसार कुमार, MEO, अजय कुमार सिंह, Assistant Director Cum DPRO, अनुराधा किरण, LEO, जयगोपाल नाथ, LEO, जयकृष्ण कुमार, SDWO, कलश कुमार, BWO, कामना कुमारी, LEO, मुकेश कुमार, MEO, पंकज कुमार, MEO, प्रेम शंकर, Assistant Director Cum DPRO, प्रिया भारती, RDO, पप्पु कुमार, ARCS, प्रशांत कुमार, SDWO, सुमन कुमारी, RDO, शालु कुमारी, BAS, साक्षी मिश्रा, BWO, सत्येंद्र कुमार मांझी, Assistant Director Cum DPRO, शशि कुमार, MEO, विकास कुमार, BAS, विवेक आर्या, BPRO

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