महिला सशक्तिकरण का जरिया बनती पशु सखियां/रिपोर्ट नसीम रब्बानी
1 min readमहिला सशक्तिकरण का जरिया बनती पशु सखियां/रिपोर्ट नसीम रब्बानी
– बकरी पालन में दिखा रही भविष्य का लाभ
– प्रत्येक महीने 5 हजार तक करती हैं अर्जन
वैशाली। 29 जुलाई
गरीबों की गाय जिसे हम बकरी भी कहते हैं। जिले की पशु सखियों को आर्थिक रुप से सक्षम बना रहा है। इन पशु सखियों को सक्षम बनाने में आगा खान ग्राम समर्थन कार्यक्रम बेहद ही महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है, जो समुदाय स्तर पर पशु सखी के नाम से लोकप्रिय महिला पशु स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं का एक कैडर प्रोत्साहित कर रहा है। यह कार्यक्रम वैशाली जिले के हाजीपुर, बिदुपुर और राजापाकड़ प्रखंडों में गरीब ग्रामीण महिलाओं के जीवन मे न केवल आर्थिक बल्कि सामाजिक बदलाव ला रहा है बल्कि इन पशु सखियों के सहयोग से उनकी बकरियों के उत्पादन और उत्पादकता में सुधार हो रहा है। भूमिहीन परिवार में बकरी पालन अतिरिक्त आय का एक बड़ा जरिया है, इसीलिए अक्सर बकरी को गरीब आदमी की गाय भी कहा जाता है। इस कार्यक्रम से बकरी पालने वाली महिलाओं को सीधा लाभ होता है क्योंकि बकरी पालन से पैसा सीधे महिलाओं तक पहुंचता है।
पशुओं की सहायता व देखभाल का मिलता है प्रशिक्षण
हाजीपुर के सदुल्लापुर गांव की संगीता देवी प्रशिक्षण के बाद पशु सखी बन गई है। इसी प्रकार से बिदुपुर की अनीता और राजपाकड़ की रेखा भी अपने व आसपास के गाँव मे बकरियों का सामान्य इलाज के बारे मे बकरी पालकों को मदद करती है। आगा खान ग्राम समर्थन कार्यक्रम (भारत), बिहार के रीजनल मैनेजर सुनील पाण्डेय बताते हैं कि यह कार्यक्रम गोदरेज एग्रोवेट और एचडीएफ़सी परिवर्तन के सहयोग से संभव हो सका है। एकेआरएसपीआई के डॉ वसंत कुमार ने सबसे पहले स्थानीय स्तर पर स्वयं सहायता समूहों का गठन किया ताकि महिला किसान सशक्त हो सकें, इसी दौरान महिलाओं ने जानकारी दिया कि बकरी पालन मे लाभ न होने का मुख्य कारण अधिकतर मेमनों का मर जाना होता है, इसके अलावा बकरी का वजन न बढ़ाना भी एक मुख्य समस्या के रूप मे सामने आया। इसी के तहत अपने पूर्व अनुभवों के आधार पर संस्था ने उन महिलाओं को प्रशिक्षण दिया जो वाकई में पीड़ित पशुओं की सहायता व देखभाल करना चाहती हैं। इससे न सिर्फ महिला बकरी पालकों को विभिन्न जानकारियां और सेवाएँ प्राप्त होंगी बल्कि वे स्वयं एक लघु उद्यमी की तरह कार्य कर आमदनी भी कर सकेंगी। प्रशिक्षण के तकनीकी और सामाजिक सत्रों को इस प्रकार डिजाइन किया गया है कि प्रशिक्षण के दौरान वे इतनी सशक्त हो जाती हैं कि इस मिशन को भलीभांति समझते हुए कष्ट में पड़े हुए जानवरों की एक मित्र की भांति देखभाल करती हैं। यही कारण है कि ऐसी महिलाओं को पशु सखी नाम दिया गया है।
कृषि विज्ञान केंद्र बिरौली के प्रमुख और पशु चिकित्सा विज्ञान के जानकार डॉ आर के तिवारी ने तकनीकी प्रशिक्षण सत्रों के डिजाइन मे योगदान दिया वहीं केवीके हाजीपुर की प्रमुख संगीता कुशवाहा ने जेंडर सत्रों के डिजाइन मे योगदान दिया। तकनीकी प्रशिक्षण में बकरी को होनेवाली बीमारियों, उनके लक्षण और बचाव के बारे में बताया गया. प्रशिक्षण के दौरान छोटी-छोटी बीमारियों से बकरी को बचाने की जानकारी, दवा संबंधी प्रशिक्षण के साथ इलाज के बारे में भी बताया गया. प्रशिक्षण के बाद ये पशु सखियाँ गांव में इटी, पीपीआर व डीवार्मिंग जैसी जरूरी सेवाएं न्यूनतम खर्च पर उपलब्ध करा रही हैं. गांव में कैल्शियम, बकरी आहार, दाना का निर्माण, बकरी घर जैसे नये प्रयोग भी शुरू करवाये गए।
हर महीने 5 हजार तक करती है अर्जित
संगीता देवी, अनीता और रेखा आगा खान ग्राम समर्थन कार्यक्रम (भारत) को धन्यवाद देते हुये बताती है कि आज गांव में उनकी इज्जत है। लोग कहते हैं कि पशु सखी से हमे काफी मदद मिलती है। अब बकरी बीमार होने पर लोग उन्हें बुलाते ही नहीं, आदर-सत्कार भी देते हैं। इस काम में वे पशुओं को आवश्यक दवाइयाँ, पशु आहार व आवश्यक पोषक तत्व उपलब्ध कराने के साथ ही लघु उद्यमी के रूप में भी उभरी हैं। इससे उनकी आमदनी में भी इजाफा हुआ है जिसके चलते एक पशु सखी महीने में लगभग 2 से 5हजार रूपए अर्जित कर लेती है।