अलीनगर की सियासत : बिखरी और राजद के छाया मे भाजपा वहीं संगठित जदयू का समीकरण,
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अलीनगर की सियासत : बिखरी और राजद के छाया मे भाजपा वहीं संगठित जदयू का समीकरण,
फिर भी सीट बंटवारे में मौन जदयू
अलीनगर विधानसभा क्षेत्र, जो दरभंगा जिले की दस सीटों में से एक है, हमेशा से राजनीतिक समीकरणों का केंद्र रहा है। यहां जातीय संतुलन, स्थानीय नेतृत्व और संगठनात्मक मजबूती ही जीत-हार तय करती आई है। 2010 के बाद से यह सीट कई बार पलटी खा चुकी है, कभी एनडीए को तो कभी विपक्ष को अवसर देती रही है। यही वजह है कि 2025 के विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक हलकों में अलीनगर सबसे चर्चित सीटों में गिनी जा रही है।
भाजपा की बिखरी हुई तस्वीर
मौजूदा हालात में भाजपा की स्थिति अलीनगर में बेहद जटिल है। पार्टी कई धड़ों में बंटी नज़र आती है। सांसद खेमा अपने भीतर ही छोटे-छोटे गुटों में बंटा हुआ है, वहीं विधायक खेमा भी आपसी अविश्वास और खींचतान से जकड़ा हुआ है। नतीजा यह कि भाजपा का पूरा ढांचा जमीनी स्तर पर बिखरा और दिशाहीन प्रतीत होता है।
चुनावी विश्लेषकों की मानें तो 2024 लोकसभा चुनाव में ही भाजपा की यह कलह खुलकर सामने आ चुकी है। आरोप है कि अलीनगर से जुड़े भाजपा नेताओं ने परोक्ष रूप से अपने ही गठबंधन के उम्मीदवार को कमजोर किया और पर्दे के पीछे विपक्ष को बढ़त दिलाने की कोशिश की। इतना ही नहीं, 2020 और 2015 के विधानसभा चुनावों में भी ऐसे कई उदाहरण सामने आए जहां भाजपा के कार्यकर्ता खुलकर काम न कर विपक्ष को लाभ पहुंचाते देखे गए।
राजद पृष्ठभूमि वाले चेहरे और भाजपा की दुविधा
भाजपा के सामने सबसे बड़ा संकट यह है कि जिन नेताओं पर वह अलीनगर में भरोसा जता रही है, उनका अतीत राजद से गहराई से जुड़ा रहा है। कभी वे राजद के बड़े चेहरे माने जाते थे, और अब भाजपा में आकर अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं। विडंबना यह है कि भाजपा इन्हीं नेताओं पर अपने भविष्य का दांव लगाना चाहती है।
गंभीर आरोप यह भी है कि भाजपा में शामिल हुए इन नेताओं ने बूथ स्तर पर अपने पुराने राजद समर्थकों को ही प्राथमिकता दी। आरोप है कि बीएलओ की नियुक्ति में विपक्ष समर्थकों को तरजीह दी गई, जिससे एनडीए समर्थक मतदाताओं के नाम बड़ी संख्या में मतदाता सूची से काटे गए। यदि इन आरोपों में सचाई का अंश भी है, तो यह भाजपा के लिए आत्मघाती कदम साबित हो सकता है।
जदयू का संगठित ढांचा
दूसरी ओर, जदयू की स्थिति अलीनगर में अपेक्षाकृत मजबूत और संगठित दिखाई देती है। पार्टी के पास यहां ऐसे स्थानीय चेहरे मौजूद हैं जिनकी पकड़ गांव-गांव और पंचायत-पंचायत तक है। इन नेताओं की पृष्ठभूमि साफ, संगठनात्मक पकड़ मजबूत और जनता के बीच सीधी पैठ है। यही कारण है कि राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि सीट जदयू के खाते में जाती है, तो एनडीए की जीत सुनिश्चित मानी जा सकती है।
जदयू के पास विकल्प भी मौजूद हैं—कुछ अनुभवी और कुछ अपेक्षाकृत नए चेहरे, जिन्होंने बीते वर्षों में अपनी साख बनाई है। इनमें से कौन चुनावी मैदान में उतरेगा यह पार्टी का आंतरिक निर्णय है, लेकिन इतना तय है कि जदयू का उम्मीदवार भाजपा की तुलना में कहीं अधिक एकजुट समर्थन और संगठनात्मक मजबूती लेकर मैदान में उतरेगा।
दरभंगा की सभी सीटों पर असर
अलीनगर का असर केवल एक सीट तक सीमित नहीं है। दरभंगा जिले की बाकी नौ सीटों पर भी यहां का फैसला सीधा असर डालता है। यदि भाजपा अपनी हठधर्मिता में सीट अपने पास रखती है, तो अलीनगर ही नहीं बल्कि पूरे जिले में उसके खिलाफ नकारात्मक संदेश जाएगा। मतदाता मान लेंगे कि भाजपा अपनी आंतरिक गुटबाज़ी को सुलझाने की बजाय उन्हीं चेहरों पर निर्भर है जिनकी जड़ें विपक्ष में रही हैं। यह स्थिति न केवल राजद को सीधा लाभ पहुंचाएगी बल्कि एनडीए के भीतर असंतोष भी गहरा करेगी।
इसके विपरीत, यदि विवेकपूर्ण निर्णय लेकर सीट जदयू को दी जाती है, तो न केवल अलीनगर बल्कि दरभंगा की अधिकांश सीटों पर एनडीए की स्थिति मज़बूत होगी। संगठित जदयू, एनडीए को वह बढ़त दिला सकता है जिसकी बिहार की राजनीति में आज सबसे अधिक जरूरत है।
अलीनगर विधानसभा सीट आज एनडीए के लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है। एक ओर बिखरी हुई, गुटबाज़ी से ग्रसित भाजपा है, जो राजद पृष्ठभूमि वाले नेताओं पर टिके होने से अपनी पहचान खोती दिख रही है। दूसरी ओर जदयू है, जो संगठित ढांचे और साफ-सुथरे स्थानीय नेतृत्व के सहारे चुनावी मैदान में मजबूती से उतर सकता है।
अब फैसला एनडीए को करना है—क्या वह बिखरी हुई भाजपा को सीट देकर दरभंगा की बाकी नौ सीटों पर भी जोखिम उठाएगा, या फिर जदयू को आगे कर अलीनगर को जीत का पत्ता बनाएगा? यह केवल अलीनगर का चुनाव नहीं, बल्कि पूरे बिहार में एनडीए की भविष्य की राजनीति का रास्ता तय करने वाला निर्णय साबित होगा।