बिहार की राजनीति में पसमांदा मुसलमानों की आवाज़ एक बार फिर प्रभावी ढंग से उठाई गई।
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बिहार की राजनीति में पसमांदा मुसलमानों की आवाज़ एक बार फिर प्रभावी ढंग से उठाई गई।
कल पसमांदा समाज के बिहार के एक बड़े नेता ने कहा कि राज्य की लगभग 14% पसमांदा मुस्लिम आबादी को लगातार नज़रअंदाज़ किया जाता रहा है, जबकि यही समाज सबसे पिछड़े वर्गों में आता है और सामाजिक-आर्थिक रूप से विशेष सहयोग का हक़दार है।
नेता ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि बिहार की सभी तथाकथित धर्मनिरपेक्ष पार्टियों ने पसमांदा समाज को सिर्फ़ वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया लेकिन निर्णय-निर्माण, सरकार, संगठन और पदों में हिस्सेदारी देने की वास्तविक इच्छा नहीं दिखाई।
उन्होंने कहा
“आज जो राजनीतिक नतीजे सामने आए हैं, वह इसी लापरवाही का नतीजा है। अब पसमांदा की बात जो करेगा, हक़ देगा, उसी को पसमांदा मुस्लिम वोट का अधिकार मिलेगा।”
नीतीश कुमार को विशेष आग्रह
बिहार के विकास पुरुष, माननीय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को संदेश देते हुए उन्होंने कहा कि
पसमांदा मुसलमानों को सरकार, बोर्ड, निगम, आयोग और योजनाओं में समुचित प्रतिनिधित्व दिया जाए।
“सबके साथ, सबके विकास” की नीति का वास्तविक और ज़मीनी उदाहरण तब ही सामने आएगा जब पसमांदा समाज को भी निष्पक्ष भागीदारी मिलेगी।
अल्पसंख्यक कल्याण विभाग की योजनाओं में पसमांदा समुदाय के लिए विशेष उप-कोटा, छात्रवृत्ति, कौशल विकास और उद्यमिता कार्यक्रम लागू किए जाएं।
संगठन और योजनाओं में स्थान की माँग
पसमांदा नेता ने यह भी कहा कि सरकार को चाहिए कि
राज्य के महत्वपूर्ण अल्पसंख्यक संगठनों, वक़्फ़ बोर्ड, कौशल विकास मिशन, हाउसिंग बोर्ड आदि में पसमांदा समाज के योग्य प्रतिनिधियों को जगह दे।
पसमांदा समाज के युवाओं, छात्रों, महिलाओं और मज़दूर वर्ग के लिए विशिष्ट विकास योजनाएँ तैयार की जाएँ।
उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि बिहार की राजनीति पसमांदा मुसलमानों की आवाज़ को गंभीरता से सुने और उन्हें बराबरी का सम्मान व अवसर दे।
