August 30, 2025

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लेख: राजद की राजनीति में उत्तर प्रदेश का घुसपैठ और पसमांदा मुसलमानों की अनदेखी

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 लेख: राजद की राजनीति में उत्तर प्रदेश का घुसपैठ और पसमांदा मुसलमानों की अनदेखी

 

राष्ट्रीय जनता दल (राजद) बिहार की राजनीति में एक महत्वपूर्ण पार्टी है। यह पार्टी सामाजिक न्याय, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों की राजनीति पर टिकी रही है। लेकिन बीते कुछ वर्षों में राजद के भीतर कई तरह के बदलाव और बाहरी हस्तक्षेप दिखाई देने लगे हैं, जिनका असर पार्टी की पारंपरिक मुस्लिम–यादव (MY) राजनीति पर साफ़ दिख रहा है।

✦ उत्तर प्रदेश से संजय यादव का हस्तक्षेप

राजद की राजनीति में उत्तर प्रदेश से आए संजय यादव का दखल बढ़ा है। संजय यादव उत्तर प्रदेश की पृष्ठभूमि से हैं और पार्टी संगठन पर गहरी पकड़ बनाने की कोशिश में लगे हैं। सवाल यह उठता है कि बिहार की राजनीतिक और सामाजिक ज़रूरतों को समझे बिना एक बाहरी नेता किस तरह से पार्टी की जड़ों में घुसपैठ कर सकता है?

राजद की रीढ़ कहे जाने वाले मुस्लिम–यादव समीकरण को बिगाड़ने में सबसे बड़ी भूमिका ऐसे बाहरी नेताओं की है, जो ज़मीनी कार्यकर्ताओं और पसमांदा समाज के संघर्ष से पूरी तरह अनभिज्ञ हैं। नतीजतन, पार्टी का वह आधार, जिस पर यह दशकों से खड़ी थी, धीरे–धीरे कमजोर हो रहा है।

✦ पसमांदा मुसलमानों की अनदेखी

बिहार की आबादी में पसमांदा मुसलमानों की हिस्सेदारी बहुत बड़ी है, लेकिन उन्हें संगठन और नेतृत्व स्तर पर हमेशा दरकिनार किया गया है। इरफान अली जामियावाला जैसे नेता, जिन्होंने JPC कमिटी में वक़्फ़ बिल पर पसमांदा मुसलमानों की आवाज़ बुलंद की, उन्हें पार्टी के भीतर वह जगह नहीं मिलती जिसके वे हक़दार हैं।

यह साफ़ तौर पर दिखाता है कि राजद केवल “मुस्लिम” नाम पर वोट लेती है, लेकिन असल मायने में मुसलमानों की आंतरिक विविधता और खासकर पसमांदा समाज के दर्द को दरकिनार कर देती है।

✦ क्यों नहीं दी जाती जगह?

पार्टी का नेतृत्व अशराफ और कुछ यादव नेताओं के इर्द–गिर्द सिमट गया है।

पसमांदा मुसलमानों की संगठनात्मक हिस्सेदारी पर रोक लगाकर उन्हें सिर्फ़ वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया जाता है।

इरफान जामियावाला जैसे नेता, जो जमीनी स्तर पर पसमांदा समाज की आवाज़ उठाते हैं, उन्हें दबा दिया जाता है ताकि पारंपरिक नेतृत्व को चुनौती न मिले।

उत्तर प्रदेश से आए रणनीतिकार पार्टी को बिहार की ज़मीनी सच्चाई से दूर ले जा रहे हैं।

✦ निष्कर्ष

राजद अगर सचमुच सामाजिक न्याय और पिछड़े–अल्पसंख्यक वर्गों की पार्टी होने का दावा करती है तो उसे सबसे पहले अपनी ही पार्टी संरचना में पसमांदा मुसलमानों को न्याय देना होगा। इरफान जामियावाला जैसे नेताओं को नज़रअंदाज़ करना यह दिखाता है कि पार्टी सिर्फ़ नारेबाज़ी करती है, लेकिन पसमांदा समाज के असली प्रतिनिधित्व से डरती है।

उत्तर प्रदेश से आए नेताओं की घुसपैठ और आंतरिक लोकतंत्र की कमी ने राजद को कमजोर किया है। अगर इस प्रवृत्ति को नहीं रोका गया, तो पार्टी न तो मुस्लिम–यादव समीकरण बचा पाएगी और न ही अपनी सामाजिक न्याय की पहचान,

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