November 2, 2023

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जब सृष्टि धारा की संचर और प्रति संचर में परम पुरुष रहते हैं तो उसे कहते हैं परम पुरुष की लीला भाव

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जब सृष्टि धारा की संचर और प्रति संचर में परम पुरुष रहते हैं तो उसे कहते हैं परम पुरुष की लीला भाव

परम पुरुष एकल सत्ता है जब वह अकेले थे उस समय किसी प्रकार की सृष्टि नहीं थी सृष्टि धारा का आरम्भ तब होता है जब निर्गुण ब्रह्म सगुण बन जाते हैं


लीला उस खेल को कहते हैं जिस खेल का रहस्य मालूम नहीं है और जब किसी खेल का रहस्य मालूम हो जाये वह लीला नहीं रह जाता उसे क्रीड़ा कहते है
_पातेपुर 2 नवंबर 2023

रिपोर्ट :मोहम्मद ऐहतेशाम पप्पू

वैशाली :आनन्द मार्ग प्रचारक संघ की ओर से आयोजित तीन दिवसीय विश्व स्तरीय धर्म महासम्मेलन में पातेपुर एवं उसके आसपास के हजारों संख्या में आनंद मार्गी इस धर्म महा सम्मेलन में भाग ले रहे हैं मुंगेर जिला के बाबा नगर जमालपुर में
अमझर कोलकाली, आनन्द सम्भूति मास्टर यूनिट में ब्रह्म मुहूर्त में साधक-सधिकाओं ने गुरु सकाश एवं पाञ्चजन्य में ” बाबा नाम केवलम” का गायन कर वातावरण को मधुमय बना दिया। प्रभात फेरी में गली- गली अष्टाक्षरी महामंत्र का गायन किया।

पुरोधा प्रमुख जी के पंडाल पहुंचने पर कौशिकी व तांडव नृत्य किया गया। पुरोधा प्रमुख श्रद्धेय आचार्य विश्वदेवानन्द अवधूत दादा ने *”परम पुरुष की लीला”* विषय पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि परम पुरुष एकल सत्ता है जब वह अकेले थे उस समय किसी प्रकार की सृष्टि नहीं थी सृष्टि धारा का आरम्भ कब होता है जब निर्गुण ब्रह्म सगुण बन जाते हैं । उस अवस्था में प्रकृति अपने सृजनात्मक क्षमता को व्यक्त नहीं कर पाती जब परम पुरुष अक्षुण्ण अवस्था में रहते हैं । परम पुरुष जब स्वयं एक से अनेक होने का संकल्प लेते हैं तब सृष्टि शुरू होती है , प्रकृति के द्वारा संचर धारा में भूमामन और पंचभूत तत्वों का निर्माण होता है। वही प्रतिसंचर धारा में असंख्य जीवों का निर्माण होता है यही प्रकृति द्वारा सृष्टि परिदृश्यमान जगत है। जो हमारे सामने दृष्टिगोचर होता है ,सृष्टि के सभी जीव सगुण ब्रह्म की अभिव्यक्ति है। परम पुरुष ने स्वयं को ही परम श्रेष्ठ के रूप में परिवर्तित करते हैं । परम पुरुष ही इस सृष्टि के कारण सत्ता है । जब सृष्टि धारा की संचर और प्रति संचर में परम पुरुष रहते हैं तो उसे कहते हैं परम पुरुष की लीला भाव। रंग बिरंगी दुनिया इस लीला भाव के कारण ही अस्तित्व में आया है, लीला उस खेल को कहते हैं जिस खेल का रहस्य मालूम नहीं है और जब किसी खेल का रहस्य मालूम हो जाये वह लीला नहीं रह जाता उसे क्रीड़ा कहते है , परमात्मिक खेल को ही परमात्मा लीला कहा जाता है जब चेतन सत्ता परम पुरुष अपने मूल सत्ता में रहते हैं उसे कहते हैं परम पुरुष की नित्य भाव और उसमें जो आनन्द है उसे कहते हैं नित्यानन्द कहा गया है , परम पुरुष एक है किन्तु विद्वान लोग उन्हें अनेक रूपों में व्याख्यायित करते हैं। वही परम पुरुष से संलग्न साधक इस परिदृश्यमान जगत को दो दृष्टिकोण से देखते है पहले है वह देखता है कि एक ही असीम अनादि अनन्त परम सत्ता ही विभिन्न रूपों में व्यक्त है तथा सभी कुछ इस निर्गुण ब्रह्म में मिल रहे हैं। दूसरा वहीं रंग बिरंगी घटनाओं के रूप में सजीव-निर्जीव, पशु- पक्षी ,पेड़-पौधे, मनुष्य नाना प्रकार की गतिविधियों को शुद्ध रूप में देखते है। अब यहां प्रश्न है कि इन दोनों पक्षों में कौन बेहतर है एक है नित्य भाव और दूसरा है लीला भाव। कौन बेहतर है दृष्टिकोण है बाबा कहते हैं इन दोनों में कौन बेहतर है यह कहना कठिन है क्योंकि यह दोनों को लेकर ही परम पुरुष का पूर्ण भाव है परम पुरुष का पूर्णभाव है मधुर भाव है किसी को भी छोड़ देने से उनके मधुर भाव का जागरण करना कठिन है। यह रोगों दोनों भाव परम पुरुष के मधुर भाव को व्यक्त करते हैं इस प्रकार देखते हैं कि यह विश्व परम पुरुष की ही अभिव्यक्ति है सभी जीव सत्ता अनुमन का अस्तित्व उनके ऊपर ही निर्भरशील है । इस संसार का अंतिम मालिक मालिकाना उन्हीं के पास है वह किसी भी वस्तु को अपनी इच्छा के अनुसार कैसे भी रख सकते हैं वह पुरुष को नारी और बच्चे को बूढ़ा, आदमी को जानवर आदि कुछ भी बना सकते हैं यही परम पुरुष की लीला है।

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