जाति-धर्म और भाषा के आधार पर मत बाटो देश को! देश संविधान से चलता है , किसी व्यक्ति से नहीं ।
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‘जाति-धर्म और भाषा के आधार पर मत बाटो देश को! देश संविधान से चलता है , किसी व्यक्ति से नहीं ।
( रवींद्र कुमार रतन, स्वतंत्र लेखन,सेनानी सदन
‘ विविध पुष्पके इस गुलशन में सर्व धर्म, सम भाव करें हम।)
नफरत की दीवार तोड़ कर , सबका समान विकास करें हम।
देश के आजादी की लड़ाई को
हमने तो देखा नही मगर इतिहास के पन्नों में पढा जरुर हूँ । मैं आप सबो से पूछता हूँ।क्या भारत के स्वतंत्रता की लड़ाई में अपने प्राण की आहुति देने वाले केवल हमारे हिन्दू भाई ही थे ? या और भी धर्म सम्प्रदाय के लोग भी थे? न जाने कितने मांग के दमकते सिन्दरों से , कितने अन्धेरे घरों के चिराग से, न जाने कितनी बहनों की लाल राखी से,(बिना यह जाने हुए की कौन हिन्दू, कौन मुसलमान,कौन सिक्ख,और कौनइसाई,बौद्ध, जैनहै?)आजादी की आरती सजाई थी,ऐसा होता भी क्यों नही? अनय भित्ति फिरंगीओ के शासन का उन्मूलन जो हुआ, जुल्म का जनाजा निकाल गया ।
फ़िर भारत मेंधर्म काआडम्बर क्यों?
जैसे सड़को अपनी -अपनी भाषा बोलने और लिखने की आजादी है तथा राष्ट्र भाषा हिन्दी हो कि मांग करते है क्योंकि हिंदी बोलने बल्ले अधिक हैं l उसी तरह इस देश में सभी धर्म के लोगों को रहने का अधिकार है मग़र हिन्दू धर्म राष्ट्र धर्म होना चाहिए l
आजादी की लड़ाई में भगत सिंह, अरविन्दर सिंह, मौलाना अबुल कलम आजाद, खाँ अब्दुल गफ्फार खाँ,अरना आसफअली,मो0मोक्बुल
जार्ज साहब, जैसे न जाने कितने शाहिद हो गए क्या इसी के लिए?
विश्व पटल पर भारत एक अजूबा देश है जहाँ विदेशकेनास्तिकपर्यटक भी आस्तिक बनके लौटते हैं! कहते है कि भारत भ्रमण मेंपाया किइतनी
विविधिता है, देश में जाति की
विविधिता ,भाषा की विविधिता
धर्म की विविधिता ,विचार की
विविधिताओं के बाबजूद यह देश तरक्की कर रहा है,आगे बढ़ रहा है निश्चित रुप से कोई ईश्वर,अल्ला, गुरुद्वारा या चर्च है,मन्दिर ,मस्जिद का वजुद है जिसकी वजह से यह देश चल रहा है।जैसे यहाँ हिन्दी
भाषी अधिक हैं मगर सभी भाषा-भाषी को आजादी है
अपनी-अपनी भाषामे बोलने,
लिखने का,उसी तरह हिन्दू अधिक हैं तो क्या?सिक्ख,इसाई ,मुसलमान और जैन, बौद्ध धर्मावलंबी को भी छुट है वे मन्दिर की तरह अपने -अपने मस्जिद, गुरुद्वारा चर्च , आदि में अपने-अपने धर्मानुकुल आस्था अदा करने जा सकता हैं। सब एक साथ रह्ते हैं।सभी का आपस मे यथोचित भाई,चाचा का सम्बंध है,अजायब घर म्युजियम की तरह सभी धर्म ,सभीभाषा के लोग मिल जुल करआपसी
ताल मेल ,मेल मुहब्बत से रह्ते हैं फ़िर राष्ट्र की अस्मिता के साथ खिलवार क्यों?नेपाल ही एक हिन्दू राष्ट्र है मगर हिंदुस्तान का तो जोड़ नही।यह तो विश्व मंच पर अनेकता में एकता ,विविधिताओं मे समानता , नारंगी की तरह भीतर सभी जाति धर्म,भाषा को आजादी है मगर उपर से भारतीय आवरणसे ढँका हुआ ,एकता ,भाईचाराका प्रतीकहै।
संयुक्त परिवार की कल्पना कीजिये और भारत मां की सब सन्तान आपसी नफरत की दीवार ढहा कर प्रेममुहब्बत स्नेह ,सहयोग की मिशाल पेश करें। सबको इतना शिक्षित कर दें कि सब परिवार नियो- जन के महत्व को समम्झें और उसका उपयोग करें।
भारत सत्य-अहिंसा,करुणा, मैत्री,सहिष्णुता ,इमानदारी,
अनेकता में एकता,भाई चारा
और प्रेम प्यार का पुजारी देश रहा है। यही भरत की वैश्विक
दृष्टि है।भविष्य का भारत, अपने इन्हीं मूल्यों को आत्मसात कर प्रगति के पथ पर सतत अग्रसर हो कर विश्व को वसुधेव कुटुंबकम का संदेश देता है।
अयं निज:प्रोवेति गणना लघुचेतसाम ।
उदारचरितानामतुबसुधैबकुटुम्बकम।
‘ भारत ‘ दो शब्दों के योग से बना है । भा + रत= भा का अर्थ ज्ञान और रत का अर्थ लीन होता है।अर्थात वह देश जो ज्ञान मे लीन हो।इसपर
अलग -अलग विद्वानो ने अलग -अलग विचार दिया है।
ज्ञान कैसा हो ,तो सम भाव का , एकता का,आपसी आशा और विश्वास का फ़िर
भारत को हिन्दू राष्ट्र या मुस्लिम राष्ट्र या सिक्ख राष्ट्र या इसाई राष्ट्र कोई कैसे बना सकता है? भारत तो गंगा माँ की तरह पवित्र और पावन
अन्त:सलिला है जिसमें सभीजाति- धर्म आकर पवित्र और पावन हो जाता है ।
‘ हिन्दू,मुस्लिम,सिक्ख,इसाई,
सबके हिस्से का है यह देश।
प्रेम भाव से मिल जुल करके रहने का है यही परिवेश ।’
‘ मिडिया’ भारत के विकास
का प्रमुख स्तम्भ है उसे देखना चाहिए कि अगर कोई संविधान का उल्लन्घन कर रहा है तो उन्हे प्रश्न उठाना चाहिए।
इस प्रकार हम देखते हैं कि भारत एक ऐसा बगीचा है ,जहाँ हिन्दू पुष्प,मुस्लिम पुष्प,सिक्ख पुष्प, इसाई पुष्प,बौद्धऔर जैन पुष्प सबको खिलने मुस्कुराने ,फलने , फूलने का समान अधिकार है,इसमेकोई रुकावट पैदा करता है तो चाहे वह कोई हो उस पर कानुनी कार्यवाही होनी चाहिए ।
भारत देश है ! तभी कोई राज्य है,,राजनीति या दलहै इसलिए हमे सभी जाति, धर्म,भाषा ,क्षेत्र से उपर
उठकर नफरत की दीवार को ढ़हाकर भारत की गौरव-गरिमा को अक्षुण्य रखना है बरकरार रखना है।
‘भारतीय सम्बिधान है प्रेम- प्यार का
इसे लेके चलना संभल -संभल के ।
हिन्दु,मुस्लिम ,सिक्ख,इसाई ,सबको,
साथ लेकर बढ़ना है विश्व-पटल पे ।,’
———‘ समाप्त ——–