भारत की राजनीति में वंशवाद और सामंतवाद का बढ़ता खतरा:इरफान अली जामियावाला
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भारत की राजनीति में वंशवाद और सामंतवाद का बढ़ता खतरा:इरफान अली जामियावाला
भारत का लोकतंत्र संविधान पर आधारित है, जहाँ नेतृत्व जनता की सेवा और अनुभव के आधार पर होना चाहिए। लेकिन आज की राजनीति में वंशवाद (Dynasty Politics) और सामंतवाद इतना गहराई से घुस चुका है कि अच्छे, अनुभवी और संघर्षशील नेताओं की जगह सीधे नेताओं के बेटे–भतीजे को कमान सौंप दी जाती है।
2. हालिया उदाहरण
मायावती (BSP) – हाल ही में उन्होंने अपने भतीजे आकाश आनंद को राष्ट्रीय संयोजक बना दिया।
लालू प्रसाद यादव (RJD) – उनके बेटे तेजस्वी यादव को उपमुख्यमंत्री बनाया गया, जबकि पार्टी में दर्जनों वरिष्ठ नेता हैं जिनका संघर्ष और अनुभव कहीं अधिक है।
राजीव गांधी (INC) – उनके बेटे राहुल गांधी को कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व मिला, जबकि उन्हें जमीन से राजनीति का अनुभव बहुत कम है।
सोनिया गांधी – प्रियंका गांधी – बिना संघर्ष और अनुभव के शीर्ष पर पहुँच गईं।
शरद पवार – अजित पवार / सुप्रिया सुले – महाराष्ट्र की राजनीति में यही पैटर्न दिखता है।
उद्धव ठाकरे (Shiv Sena) – अपने बेटे आदित्य ठाकरे को MLA और मंत्री बनाकर वंशवाद को मजबूत किया।
मुलायम सिंह यादव (SP) – उनके बेटे अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने, जबकि पार्टी के कई पुराने नेता किनारे कर दिए गए।
रामविलास पासवान (LJP) – उनके बेटे चिराग पासवान को बिना अनुभव पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया गया।
ओवैसी परिवार (AIMIM) – दादा, बाप और अब बेटे तक सीटें एक ही घराने में।
3. समस्या
1. अनुभवहीन नेतृत्व – ऐसे नेताओं को जनता और कार्यकर्ताओं की ज़मीनी समस्याओं का अनुभव नहीं होता।
2. वरिष्ठ नेताओं का अपमान – संघर्ष करने वाले पुराने नेताओं को किनारे कर दिया जाता है।
3. सामंतवाद का पुनर्जन्म – जो खुद सामंतवाद और जातिवाद के खिलाफ नारा लगाते हैं, वही अपने परिवार को ही पार्टी की बागडोर सौंप रहे हैं।
4. बहुजन राजनीति का पतन – मायावती जैसे नेताओं से उम्मीद थी कि वे वंशवाद का विरोध करेंगी, लेकिन आकाश आनंद को लाना इस उम्मीद का खात्मा है।
4. पासमांदा और बहुजन समाज का सवाल
बहुजन समाज को हमेशा “सामंतवाद के खिलाफ लड़ाई” का नारा दिया गया।
लेकिन आज वही नेता अपने बेटे–भतीजे को आगे कर रहे हैं।
आकाश आनंद को सामने लाकर मायावती ने यह संदेश दे दिया है कि अब बहुजन समाज के लिए विचारधारा नहीं, परिवारवाद ही राजनीति की कुंजी है।
इरफान जामियावाला का सवाल बिल्कुल सही है कि:
“क्या बहुजन समाज में कोई वैचारिक, संघर्षशील और अनुभवी नेता नहीं बचा जो आकाश आनंद से बेहतर हो? क्या अब राजनीति सिर्फ परिवार की जागीर बनकर रह जाएगी?”
5. निष्कर्ष
भारतीय राजनीति में वंशवाद लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा है।
अगर यही सिलसिला चलता रहा तो जनता का भरोसा और संविधान आधारित राजनीति दोनों खत्म हो जाएँगे।
असली सवाल यह है कि क्या हम जनता के संघर्षशील नेताओं को आगे लाना चाहते हैं या नेताओं के बेटे–भतीजे को?