March 8, 2021

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‌‌पिछडी बस्ती में व्यवहार परिवर्तन का सूत्रधार बना एक आंगबाड़ी केंद्र – रुन्नीसैदपुर प्रखंड स्थित मोरसंड गांव के गौरी ग्राम में हैं मॉडल आंगबाड़ी केंद्र संख्या-123 – सेविका पूनम कुमारी ने बस्ती के लोगों के रहन-सहन में बदलाव पर किए हैं सराहनीय कार्य

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‌‌पिछडी बस्ती में व्यवहार परिवर्तन का सूत्रधार बना एक आंगबाड़ी केंद्र

– रुन्नीसैदपुर प्रखंड स्थित मोरसंड गांव के गौरी ग्राम में हैं मॉडल आंगबाड़ी केंद्र संख्या-123
– सेविका पूनम कुमारी ने बस्ती के लोगों के रहन-सहन में बदलाव पर किए हैं सराहनीय कार्य

सीतामढी। 8 मार्च

समाज में किसी भी बड़े बदलाव के लिए जो बुनियादी शर्त होती है, वह है व्यवहार परिवर्तन। इसकी मिसाल देखनी है तो मोरसंड गांव के गौरी ग्राम आइए। यहां की पिछड़ी बस्ती में एक मॉडल आंगबाड़ी केंद्र ने पोषक क्षेत्र के बच्चों का रहन-सहन बदलने में बड़ी कामयाबी हासिल की है। पहले जो बच्चे गंदे कपड़े पहने रहते थे। कंधे पर टायर रखकर धूल-मिटटी में खेलते रहते थे। साफ-सफाई से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं था। ज्यादातर बच्चे कुपोषित थे। दिनभर गली-नुक्कड़ पर एक दूसरे से उलझे रहते थे, वहां बदलाव की बयार ने दस्तक दी तो नजारा ही बदल गया। अब का दृश्य यह है कि जिन बच्चों के कंधों पर टायर था, उनपर अब स्कूल बैग लटकने लगे हैं। गली-नुक्कड़ पर एक दूसरे से उलझने की जगह स्कूल या आंगबाड़ी केंद्र पर कतार में खड़े दिखते हैं। साफ-सफाई समुदाय की आदत में शुमार हो गई है। अभिभावक बच्चों के पोषण पर ध्यान देने लगे हैं। बस्ती में व्यवहार परिवर्तन का सूत्रधार बनी मॉडल आंगबाड़ी केंद्र संख्या-123 की सेविका पूनम कुमारी। उन्होंने बताया कि एक तो पिछड़ा हुआ सामुदायिक ढांचा, ऊपर से विषम भौगोलिक परिस्थिति। काम करना मुश्किल तो था, लेकिन असंभव नहीं। वे बताती हैं कि उनका केंद्र लखनदेई नदी के किनारे बसे गौरी ग्राम में है। बरसात में आधा पोषक क्षेत्र पानी से घिरा रहता है। दूसरी बात यह कि बस्ती में ज्यादातर लोग पढे-लिखे नहीं हैं। इन दो चुनौतिपूर्ण परिस्थितियों में काम को बेहतर तरीके से करने के लिए जो सबसे जरूरी लगा, वह था-व्यवहार परिवर्तन। इसी को हथियार बनाकर उन्होंने अपने पोषक क्षेत्र में अशिक्षा, गंदगी और कुपोषण को मात देने की मुहिम छेडी।

समुदाय से जुडाव और उन्हीं की भाषा में संवाद ने लाया बदलाव :

पूनम कुमारी बताती हैं कि शुरू-शुरू में पोषक क्षेत्र में लोगों को समझाने में बहुत मुश्किल होती थी। तब उपाय यह निकाला कि महीनों घर-घर जाना शुरू किया। महिलाओं से संवाद करने के लिए उन्हीं की भाषा में बात करनी शुरू की। उन्हें समझाया कि आधी से अधिक बीमारी सिर्फ गंदगी से फैलती है। इसलिए साफ-सफाई की आदत डालिए। बच्चे को खाना देने से पहले खुद भी हाथ धोईए और बच्चों का भी हाथ धुलवाईए। अगल-बगल के आठ-दस घरों की मां और दादी की छोटी टोली बनाकर उन्हें बच्चों के खानपान पर ध्यान देने के लिए प्रेरित किया। उन्हें बताया कि बच्चे के अन्नप्राशन के बाद उसके लिए एक अलग चममच-कटोरी रखिए, ताकि यह पता चल सके कि बच्चा पोषण मानक के अनुरूप खा-पी रहा है कि नहीं। बच्चा अगर खाना खाने से कतराता हो तो उसे घुमा-टहलाकर खाना खिलाईए। भूखे कभी मत रहने दीजिए, क्योंकि कुपोषण ही जानलेवा बीमारी चमकी का बहुत बड़ा कारण है। इस तरह घर-घर जाकर लोगों को जागरूक करने का नतीजा यह है कि आज पोषक क्षेत्र के लगभग 60 प्रतिशत बच्चे सुपोषित हैं। मात्र चार बच्चा रेड जोन में है, जिसके खानपान को लेकर फॉलोअप जारी है।

गोदभराई के समय से ही पोषण पर बढ़ा दिया फोकस :

पूनम कहती हैं कि पोषण पर ध्यान देने का काम उन्होंने गर्भवती महिलाओं की गोदभराई के समय से ही शुरू कर दिया। वे बताती हैं कि गर्भवती महिला की चौथे महीने में गोदभराई होती है। उस समय से ही पोषण पर ध्यान देना शुरू हो जाना चाहिए। इसी को ध्यान में रखकर उन्होंने गर्भवती महिलाओं का लगातार फॉलोअप किया। सही खानपान को लेकर उन्हें जागरूक किया। यही वजह है कि पोषक क्षेत्र में एक भी अंडर वेट बच्चे का जन्म नहीं हुआ। पूनम कहती हैं कि अच्छे पोषण के लिए मां और बच्चा दोनों पर हमने ध्यान दिया। समय-समय पर लोगों के घर जाकर याद दिलाया कि अब आपका बच्चा इतनी उम्र का हो गया है। कौन-सा आहार बच्चे के लिए पोषणयुक्त होता है, इसके बारे में बताया। बच्चों के लिए कुछ उपहार भी ले जाती थी, ताकि भावनात्मक जुड़ाव बना रहे। कब बच्चे को कौन-सा टीका दिया जाना जरूरी है, यह भी बताया। पोषक क्षेत्र में इन प्रयासों का बेहतर परिणाम दिखने लगा है।

बरसात में पानी हेलकर भी पोषक क्षेत्र में गृह भ्रमण जारी रखा :

पूनम बताती हैं कि उनका आंगबाड़ी केंद्र जिस पोषक क्षेत्र में है, वह लखनदेई नदी के किनारे है। बरसात में पोषक क्षेत्र में जलजमाव रहता था, लेकिन घर-घर जाना जारी रखा। पानी में हेलकर भी लोगों तक पहुंच बनाए रखी। कई बार घर लौटने के दौरान बीमार भी पड़ी, लेकिन यह सब तो होता ही रहता है। मेरे जैसी अनेकों आंगबाड़ी सेविकाएं इस परिस्थिति से गुजरती हैं। चुनौतियां काम का हिस्सा होती हैं। सरकार ने आंगबाड़ी केंद्रों को जितनी सुविधाएं मुहैया कराई हैं, उसका मकसद साफ है कि हमारी जिम्मेवारी भी बड़ी है। हम आंगबाड़ी सेविकाएं सामुदायिक स्वास्थ्य की पहली कड़ी हैं, इसलिए अपने काम को बेहतर तरीके से करना हर किसी का दायित्व है।

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